बंद आंखें मेरी उसको ख्वाबों में आना था आँखें जो खुली तो सामने यादों का नजराना था कभी रूह में शामिल होने का उसका वादा था आज वो क्या मेरे साथ तो उसका साया ना था बेपनाह मोहब्बत की जिनसे उम्मीद लगाए बैठा था तन्हाइयों की उनसे ये सौगातें मिलेंगी बताया ना था एक मैने ही खोल दी दिल की किताब उसके सामने उसने तो कभी हाल-ए-दिल सुनाया ना था वो फिरते रहे दिल में ना जाने कितने राज लिये हमने तो कभी उनसे जज्बातों को छुपाया ना था जाने क्यों हम बेवजह खुश हुआ करते थे उसने तो हमे किसी भी खुशी में बुलाया ना था चलते फिरते बेहक रहे थे कदम मेरे जाम आँखों से तो कभी उसने पिलाया ना था मैने अपनी आंखों में क़ैद किया था उस उसने वो ख़्वाब कभी आँखों में सजाया ना था ना दिल को खबर है अब उसकी शिकवा क्या उससे दिल तो मैने ही उससे लगाया था