ये हसीनाऐ भी कमाल करती है
अगर कोई बच निकला इनकी क़ातिल निग़ाहों से
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तेरी यादों के क़त्ल की साज़िश,
सौ बार की है....
हर बार ख़ैरियत से आकर,
मेरे ज़हन में बैठ जाती हैं...-
खूबसूरती,प्यास आंखों में और एक मासूमियत है चेहरे पर
दिल की कैसी किसे फ़िक्र,सब मर जाते है चेहरे पर
बनावट ऐसी है सीरत में, जैसे वफ़ा की मूरत हो
बेवफ़ा ने वफ़ा का चेहरा लगा रखा है चेहरे पर
खेल खेल में उसने नजाने,कितने इश्क़ है क़त्ल किये
शिकन देखो एक नहीं है, जालिम से उस चेहरे पर-
"रुखसत" एक "परी" ने हमें इस कदर कर दिया ।
जहां के हम थे वहीं पर हमारा "कत्ल" कर दिया ।।-
इल्जाम तो लगना ही था तूने नजरों से जो तीर बरसाए थे
मैं बचता भी कैसे हैं तूने काजल जो आंखों में लगाया था-
सुना है
आपकी लहराती जुल्फों ने
कत्ल बहुत सारे किए है
पर हमारी तरह आपकी
जुल्फों पर कोई मरा नहीं होगा-
यूं तो वो सर से पांव तक पूरी क़यामत है
लेकिन मेरे कत्ल का इल्ज़ाम सिर्फ़ उसकी आंखों पर है-