खैरियत ना पूछो उससे
वो मौत से लड़ कर आया है
अपने ही घर से निकाला गया,
मारा गया, जलील हुआ
खामोश खड़ी थी दुनिया
वो अपनों की लाशें बिना दफनाये आया है
हाल ना पूछो उससे
वो कश्मीर से भाग के आया है...-
दरवाजे पे पर्ची लगाके
शाम तक का वक्त दिया
लुट गई इज्ज़त मां बेटियों की
और तुमने क्या किया
हाथों मे क्या चुड़ियां रही थी
जो लड़ ना सके थे घाटी में
ज़िन्दा रहके क्या ही उखाड़ा
जो भाग आए अपनी माटी से
जेहादियों से ना लड़ पाए
आखिर ऐसा भी क्या खंडित थे
कान्हा के भी ना हो सके
भला तुम भी कोई पंडित थे-
'जी' भारत में आदर व प्रेम व्यक्त करने हेतु आम प्रचलित संबोधन है। 'आर्य' शब्द बिगड़ कर ( अपभ्रंश होकर ) 'अज्ज' हुआ और 'जी' इसी का संक्षिप्त सहज रूप है।'
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वो, मैं बरसो से राह तके बैठा हूं
1990 से जल रहा, मैं कश्मीरी पंडितो का घर जो ठहरा हूं-
बहर हमारी मीर रही है
ग़ज़लें अपनी तीर रही है
सीने को फाड़ के रख दे जो
वो जंगी शमशीर रही है
मौत हमें पकड़ेगी कैसे
जाँ अपनी जागीर रही है
बेघर पंडित रोता हरदम
नम घाटी , कश्मीर रही है
पंडित होना पाप हो जैसे
हालत बस गम्भीर रही है
पंडित को जीने दो साहब
सारंग की तहरीर रही है-
Zara socho Bharat wasio koi jab aap Ko app Kay ghar say nilalahe to kaise lage gaa aise hua Hei Kashmiri Hindu kay sath Kashmiri Hindu Genocide 1990s
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Jammu and Kashmir UT mein Miniority Kay Liya socho kuch.Na Naukari milti Na category
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मैं उस वादी की बेटी हूँ!
सही सुना गद्दारों तुमने,
मैं उसी वादी की बेटी हूँ,
छाया आतंक का साया जिसपे,
मैं उस कश्मीर की बेटी हूँ! ।।1।।
मत सोचों मैं भूल गई,
उन निर्मम अत्याचारों को,
मैं कैसे जाऊँ भूल कभी
वो प्यारी मेरी घाटी को! ।।2।।
To be continued.......-
Ek Raat jiski subah nahi......
19 January 1990.......
Do you think what happened to Jews in Germany was the worst crime against humanity?
Then you have probably never read the Indian history.
(Read Caption)-