ऐ मेरे हमसफ़र ऐ मेरे हमनवा
रूठ कर बोलो मुझसे किधर जाओगे..
खूबसूरत हो तुम, मैंने माना मगर
बन के शम्मा रहोगे तो जल जाओगे..
ये तेरी शोखियाँ, ये तेरा बाँकपन
क़त्ल कितनों को जाने तुम कर जाओगे..
उम्र कमसिन सी है,थोड़े भोले से हो
मीठी बातों में आ कर बहल जाओगे..
ये है मुश्किल मगर, थोड़ी कोशिश करो
है यकीन मुझ को तुम भी बदल जाओगे..
है ये दुनिया बुरी, चल ना पायओगे तुम
मेरे जैसे बनोगे तो चल जाओगे...
ऐ मेरे हमसफ़र ऐ मेरे हमनवा...-
Afsoos toh yeh hai ke tu kamsin bhi nahi hai,
Phir kuyn tere hathon mein khilonay ki tarah hoon...-
कमसिन अदाओं से भरने लगे हैं
शाम होते ही सँवरने लगे हैं
बाग में दौड़ के वो नंगे पाँव,
शोख़ तितलीयाँ पकड़ने लगे हैं
अपनी नादान सी ज़िद्द की खातिर,
हम अब खुद ही से लड़ने लगे हैं
लफ़्ज़ों के माईने पूछना-मुस्कुराना
चलो वो भी शायरी करने लगे हैं
हमें हमारे रक़ीब ने इत्तला की,
वो भी ‘इश्क़’ के शेर पढ़ने लगे हैं-
केवल "क" का प्रयोग अपनी प्रेयसी के लिए|
कोरे कागज़ को कलम क्या-क्या कहे ?
कभी कहकशां की कमसिन कविता कहे,
कभी कोयल की कुहु-कुहु कहे |
कभी कातिब की कामिल कहानी कहे,
कभी कायनात की कातिल कशिश कहे...
कोरे कागज को कलम
कैसे कहे, क्या-क्या कहे ?
कातिब - लिखने वाला, कामिल - पूर्ण-
इश्क़ वो खेल नहीं जो कमसीन बच्चे खेले..
ऐ दोस्त..!!
जीना मुश्किल हो जाता है सदमे सहते सहते..!-
ये मुसल्सल बरसती बारिश की बुँदे
जब तेरे जिस्म का आलिंगन कर रही थी,
जीनि सी साड़ी के आगोश में छुपी कमसिन कलियाँ
फूलों की तरह खिलने को आतुर सी हो रही थी |-
वो नमकिन भी, शफ्फ़ाफ बदन, कमसिन उमर,
सोचे आज की रात, लगाएंगे इश्क़ की पहली "मुहर"
होगी हमारी, बरसेगी आग, बदन में भरेंगे "ज़हर"
रसीले लबों की भींच, वार करे तीखी तिरछी नज़र,
गेसूओंका जाल, उंगलियों का कमाल, बल खाती कमर,
रात की तनहायियों में, अब किसी को न थी ख़बर,
उफ़नती छतिया, लिपटे हुए बदन की सरसर,
सांसों की गरमाहट, लबों से निकलती सिसकार,
इश्क़ में मगन, बंधनों को कर दरकिनार,
होते सारे चढ़ उतार, कभी नीचे कभी ऊपर..
रोमांच लिए, छटपटाते बदन में उठती लहर..
रात जवान हुयी, निढाल बदन, जब हुयी सहर..
छोड़ी ना कोई क़सर, ऐसा उस जवानी का असर,
रात भर सताते रहे, कभी बाहर, कभी अंदर,
लेते रहे थे लुत्फ, उन मस्त घड़ियों का, इस क़दर..
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ہر گلی میں ہوس پرستوں کی
کوئی کمسن شکار ہوتی ہے
हर गली में हवस परस्तों की
कोई कमसिन शिकार होती है-
वो कमसिन सी, कुछ नमकीन सी,
मुझको छूती गई,
मीठे रस में डुबोती गई,
मैं जितना रस में भीगता गया,
वो उतना मुझे भिगोती गई |-