प्रेम उपवन की नई कली हो...
अभी तो हमें ठुकराओगी...
लेकिन भौरों से धोखा खाके...
मेरे पास ही आओगी...-
एक कली का कली से फूल तक सफर ना होता,
अगर हमसफर भंवरे ने इसका रसपान ना किया होता।-
अभी मेरी राख बुझी नहीं
ख़ामोशी क्यों छा गई मैं दर-दर भटक
रही हूं इंसाफ़ के लिए इंसाफ़ में इतनी देरी क्यों हो गई
-
**सपना**
बहता पवन था
कलियों का उपवन था
रात चांदनी थी
चाँद स्वछन्द था
हाय ये इश्क़
पवन का वेग बढ़ा तो कलियां चटक गई
भौरों की निगाहें फूलों पर अटक गई
रात ने सरगम छेड़ी चाँद भी मदहोश था
खूबसूरत सा समा आलिंगन सा जोश था
रात बस ढल गई तंद्रा निकल गई
सपने सवंर गए रूह तक उतर गए ....
रग रग मदहोश था
खूबसूरत सा समा मिलन का आग़ोश था।
-
स्त्री हो सिर उठाकर जियो
अपने सम्मान हेतु काली बनकर खून पियो
लक्ष्मी बनकर आई हो
काली बनने का साहस लेकर आई हो
फिर क्यों अपने जीवन को दुर्भाग्य समझती आई हो
तुम सरस्वती सी तन मन से नेक
तुम हो अद्भुत शक्ति एक
स्त्री तुम तो पात्र हो एक
किंतु किरदार निभाओ तुम अनेक-
समस्या मैं हूँ
तो समाधान मेरे भोले हैं
क्रोध मैं हूँ
तो नियंत्रण मेरे भोले हैं
परीक्षा मैं हूँ
तो परिणति मेरे भोले हैं
गाथा मैं हूँ
तो विवरण मेरे भोले हैं
-
ये रात काली...🌚
हर जगह अन्धेरा छाया।
रिश्ता तो सब ने बनाया।।
पर ऐसा कोई ना मिला।
जिसने ये रिश्ता निभाया।।-
जो कहते थे हमारे रग रग में वफ़ा खून बन कर बहती है
किसी ने एक बार पलट कर मुस्कुरा कर क्या देखा
हमसे रिश्ता तोड़ बैठे वो
ये दोष किसी की तिरछी निगाह का नहीं था जनाब
हमने ही उनसे कुछ ज्यादा उम्मीदें लगा ली थी शायद इसीलिए हम से मुंह मोड़ बैठे वो।
फूल से नाजुक दिल रखकर पत्थरों से खेलने गए थे हम
छीन कर हमारी महक हमसे किसी और कली से नाता जोड़ बैठे वो।-