नयी दुल्हन
एक बहू एक पत्नी,
घर की जिम्मेदारी और कई चाभी,
त्याग स्वमं को अब जिम्मेदार बनी बैठी हैं।
तोड़ के अपने सब सपनो को,
अपने परिवार की सलामती,
खुद के लिये एक सिर्फ आश लिये बैठी है।
कभी ज़ुर्म सहती कभी,
ख़ुशी छोड़ती, और कभी खुद को तोड़ती,
अब सब बर्दाश्त किये बैठी है।
क्या यही सोच के वो साथ आई ,
क्या इसी ख़ुशी के लिये सब छोड़ आई,
अब तो बस सुहागन अर्थी के इंतजार में बैठी है।-
जिम्मेदार न होने पर भी आज फिर परिस्थितियों ने हमें जिम्मेदार बना दिया
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आँखों में अश्क़ है पर उसे गिराना भूल जाते है
ज़िन्दगी के भागदौड़ में मुस्कुराना भूल जाते है
ज़वानी क्या आई ज़िम्मेदारी आ गयी कांधे पर
ज़िम्मेदारी निभाने में चैन से खाना भूल जाते है
स्कूल जाते वक़्त कितने बहाने किया करते थे
आज दर्द बेइंतहा है पर बहाना भूल जाते है
हर कोई अच्छी किस्मत लिखवा कर नहीं आता
किस्मत को बनाने में शौक पुराना भूल जाते है
दुनिया से मिलने में इतना मशरूफ़ हो गए है
कि अब ख़ुद को ख़ुद से मिलाना भूल जाते है-
जिम्मेदारियां भी बोहत निर्दयी होती है ।
एक हंसते खेलते चेहरे को परेशानियों और घबराहट में तब्दील कर देती है ।
और विडम्बना तो देखिए कि अपनी परेशानी वो किसी को बता भी नहीं सकता! वरना लोग उसे कामचोर समझेंगे ।😣-
तपती धूप में पसीना बहाते है
भरी बरसात में भीग जाते है
परिवार की जिम्मेदारी के लिए
अपने घर से दूर चले जाते है
सुकून के दो पल मयस्सर नहीं
इतना मेहनत ये कर जाते है
दो वक़्त की रोटी के ख़ातिर
अपना सारा सुकून गवांते है
दर्द और तकलीफ़ में होकर भी
अपना दर्द हंस कर छिपाते है
चाहे मौसम कोई भी हो,लेकिन
ये अपनी ज़िम्मेदारी निभाते है-
घर जा के जब बच्चो को खाना खिलाया होगा😢😢😢
बच्चो को क्या मालूम बाप ने किस हाल में कमाया होगा😢😢😢-
क्या करें ,🤔
मेरे यारा ,💏
निभानी तो ,👈
पड़ती है ,💏
हर इक जिम्मेदारी ,😊
मोहब्बत पे ,💞
भारी पड़ती है,👊
हमेशा,👍
ये सारी दुनियादारी..!!!!🏩-
घर की जिम्मेदारीयों की खातिर
मैं अपने वक़्त को बेचने लगा हूँ
और शायद अब मैं बड़ा हो गया
लोग क्या कहेंगे ये सोचने लगा हूँ-