क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा / जावेद अख़्तर
क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा
कुछ ना होगा तो तज़रूबा होगा
हँसती आँखों में झाँक कर देखो
कोई आँसू कहीं छुपा होगा
इन दिनों ना-उम्मीद सा हूँ मैं
शायद उसने भी ये सुना होगा
देखकर तुमको सोचता हूँ मैं
क्या किसी ने तुम्हें छुआ होगा-
वो बंदिशों से कहता था..
मैं तुमको तोड़ सकता हूँ !!
सहूलतों से कहता था..
मैं तुमको छोड़ सकता हूँ !!
हवाओं से वो कहता था..
मैं तुमको मोड़ सकता हूँ !!
अजीब आदमी था वो…
...जावेद अख़्तर-
"Whatever I wish to say is easy to deduce;
when what i say, turn in to your wish.."-
तुमको देखा तो यह खयाल आया,
जिंदगी धूप हैं और तुम एक साया,
आज फिर से दिल ने एक तमन्ना की
आज फिर दिलको हमने यह समजाया,
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे,
हमने क्या खोया, हमने क्या पाया,
हम जिसे गुनगुना नही सकते,
वक़्त ने ऐसा गीत क्यों गाया.....
-javed akhtar.-
हर ख़ुशी में कोई कमी सी है / जावेद अख़्तर
हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है हँसती आँखों में भी नमी-सी है
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था रात की नब्ज़ भी थमी-सी है
किसको समझायें किसकी बात नहीं ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई गर्द इन पलकों पे जमी-सी है
कह गए हम ये किससे दिल की बात शहर में एक सनसनी-सी है
हसरतें राख हो गईं लेकिन आग अब भी कहीं दबी-सी है
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ajiib aadmi tha woh
Mohabbaton ka geet tha
baghavaton ka raag tha
kabhi woh sirf phuul tha
kabhi woh sirf aag tha
ajiib aadmi tha vo
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हुम् तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ दिल की गली में खेले थे -जावेद अख्तर-
Galat baaton ko khomoshi se sunna haami bhar lena,
Bahut hain faayde ismen magar achcha nahin lagta|
Mujhe dishman se bhi khuddaari ki ummeed rahati hain,
Kisi ka bhi ho sar, kadmon mein sar achcha nahin lagta
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Huq'goi Me'n Dreeg
Nahi Karta
Be'bak Sach Khe Deta
Hai woh
حق گوئی میں دریغ نہیں کرتا
بے باک سچ کہہ دیتا ہے وہ-