वो इश्क की आग थी,
जो सुलगी थी कभी सीने में,
अब तो बस, यादों का धुआं निकलता है..!!
चौहान साहब-
तू मेरा हम साया था,
मैंने किस्मत से तुमको पाया था,
जो कल तुम्हारा हाथ पकड़ कर खड़ा था
वो शख्स, किधर से आया था....!!!
चौहान साहब-
मुकम्मल होता अगर,
तो बर्बादी होती,
अधूरा रहा, तभी तो इश्क है..
चौहान साहब-
मासूम सा चेहरा लगता है तुम्हारा,
कत्ल करती फिरती है आंखे तुम्हारी
वैरागी भी झील में डूब गया
प्यारी सुन के बातें तुम्हारी..
चौहान साहब
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रोना भी पड़ जाता है दोस्त इश्क में,
खुशियां सबको नसीब नही होती..!-
मिलावट है तेरे इश्क में इत्र और शराब की,
कभी हम महक जाते है,
कभी हम बहक जाते हैं...।
चौहान साहब-
प्यार का तो पता नहीं, पर
नफरत बहुत लोग करते है मुझसे।
चौहान साहब-
फिर तम्मनाएं मचलने लगी,
दिल चाहता है फिर से हो दीदार तेरा...
चौहान साहब-
मेरी डायरी
तेरी वजह से जिंदा हूं,
शायद मर चुके थे, अब तक
नई राहें तुमने दिखाई हैं,
हम चलना भूल चुके थे, अब तक
मेरी माशूका है तू मेरी डायरी,
वरना हम तो इश्क करना भूल चुके थे, अब तक-
बहुत बेदर्दी था वो तोड़ने वाला,
उसे मालूम नहीं था कि
कच्ची कलियां तोड़ना पाप है
एक दिल टूटा तो कौन सी आफत आन पड़ी
उसके लिए तो सात खून भी माफ है..!!-