चले थे लेकर एक कश्ती शिद्दत की अपनी,
वक्त के बहाव मे जर्जर सी हो गई।
पुकारते रहे माँझी को,आकर संभाल ले,
खा़मोशी की ज़ुबान,कश्ती ही डुबा गई।
याद बहुत आई वो कागज़ की कश्ती अपनी,
मिलती थी ख़ुशी तैराकर,जैसे साहिल को पा गई।-
लिबास
ये जो ज़रज़री लिबास
पहन के मुझे धरती पे
उगाया है, ऐ मेरे रब़
जाने क्या तेरे मन में
आया है, हर चीज
ज़रज़री है यहां, एक
को पकड़ो दूसरा चला
जाता है, दूसरे को
पकड़ो तीसरा चला
जाता है, समझ में नहीं
आता कि में दौड़ का
हिस्सा हूं या दर्शक हूं,
मुझे ओर अ़क्ल की
जरूरत है मेरे मालिक़,
की तुझे समझ सकूं,
कर सकूं वो काम
जिसके लिए बनाया है।-
ये जो ज़रज़री लिबास पहन के मुझे धरती पे उगाया है,
ऐ मेरे रब़ जाने क्या तेरे मन में आया है,
हर चीज ज़रज़री है यहां, एक को पकड़ो दूसरा चला जाता है,
दूसरे को पकड़ो तीसरा चला जाता है,
समझ में नहीं आता कि में दौड़ का हिस्सा हूं या दर्शक हूं,
मुझे ओर अ़क्ल की जरूरत है मेरे मालिक़,
की तुझे समझ सकूं, कर सकूं वो काम जिसके लिए बनाया है।-
दिल तेरे दिए ज़ख्मों से ज़ार-ज़ार है शबा।
फ़कत फिर भी तुमसे मुहब्बत करने को तैयार है शबा।।-
तेरे बाद मेरे दिल में कोई और ना बस पायेगा !
तुमने जो दिल की दीवारों को ज़र्जर कर रखा हैं !!-
धर लेगा एक दिन विकराल रूप ये आंसू
और एक बेचैन सा समंदर हो जायेगा।।
बहा ले जायेगा सब कुछ साथ ये अपने
और हर ज़र्रा - ज़र्रा जर्जर हो जायेगा।।-
भरोसे की बुनियाद कैसी ये जर्जर
जिधर देखिएगा धुँआ ही धुँआ है
मदन मोहन सक्सेना-
जर्जर सा है सब यहाँ
कुछ बिगड़ा तो खंडहर होगा.....
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Ishq me tere hr bar
hum rote h jar jar
Fir bhi q nhi smjhta mere yar
Ye dil krta h tujh se pyaar-
आज फिर
किसी का गम, अपना बनाने को जी करता है,
किसी को दिल में, बिठाने को जी करता है,
आज दिल को क्या हुआ, खुदा जाने,
बुझती हुई शमा, फिर जलाने को जी करता है,
आफतों ने, जर्जर कर दिया घर मेरा,
उसकी दरोदीवार, फिर सजाने को जी करता है,
एक मुद्दत गुज़री, जिसका साथ छूटा,
आज फिर, उसका साथ पाने को जी करता है..!!-