Jaizzstatus
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मैं भीड़ नही हूँ दुनिया की, मेरे अंदर एक जमा... read more
दिल्ली कहाँ गईं तिरे कूचों की रौनक़ें
गलियों से सर झुका के गुज़रने लगा हूँ मैं
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दिल्ली कहाँ गईं तिरे कूचों की रौनक़ें
गलियों से सर झुका के गुज़रने लगा हूँ मैं
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जब लगें ज़ख़्म तो क़ातिल को दुआ दी जाए
है यही रस्म तो ये रस्म उठा दी जाए
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कुचल के फेंक दो आँखों में ख़्वाब जितने हैं
इसी सबब से हैं हम पर अज़ाब जितने हैं
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दिल को हर लम्हा बचाते रहे जज़्बात से हम
इतने मजबूर रहे हैं कभी हालात से हम
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एक भी ख़्वाब न हो जिन में वो आँखें क्या हैं
इक न इक ख़्वाब तो आँखों में बसाओ यारो
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हौसला खो न दिया तेरी नहीं से हमने
कितनी शिकनों को चुना तेरी जबीं(माथा) से हमने
वो भी क्या दिन थे कि दीवाना बने फिरते थे
सुन लिया था तिरे बारे में कहीं से हम ने
जिस जगह पहले-पहल नाम तिरा आता है
दास्ताँ अपनी सुनाई है वहीं से हम ने
यूँ तो एहसान हसीनों के उठाए हैं बहुत
प्यार लेकिन जो किया है तो तुम्हीं से हम ने
कुछ समझ कर ही ख़ुदा तुझ को कहा है वर्ना
कौन सी बात कही इतने यक़ीं से हम ने
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में बंदूक और गिटार
दोनों चलाना जानता हूं ।
तय तुम्हे करना हे की
आप कौन सी धुन पर नाचोगे..।।
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