"स्पृहा को राख मत कर "
जीवन-मरण की बात मत कर!
प्राप्त है जो, व्यर्थ मत कर,
उम्र कुछ भी हो मुसाफिर...
स्पृहा को राख मत कर!!
द्वेष, कुण्ठा को डपटकर!
स्नेह व उल्लास भरकर,
मृत्यु से अठखेलियां कर..
जिजीविषा का त्याग मत कर!
उम्र कुछ भी हो मुसाफिर..
स्पृहा को राख मत कर!!
क्या किया? ये याद मत कर!
क्या जिया?ये बात अब कर,
शेष है जो, जी ले हंसकर...
किंचित व्यथा की बात मत कर!
उम्र कुछ भी हो मुसाफिर..
स्पृहा को राख मत कर!!
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