बनारस के रंग मे रंगना चाहती हूँ,
हाँ मे पार्वती हूँ अपने शिव से मिलना चाहती हूँ
गंगा कि धारा सी बहना चाहती हूँ,
शिव के अंश मे रहना चाहती हूँ
शिव के अंश मे प्रेम चाहती हूँ,
हाँ मे पार्वती हूँ अपने शिव से मिलना चाहती हूँ
अपने हर ज़िक्र मे उसका नाम चाहती हूँ,
अपने अंश मे उसका अंश चाहती हूँ,
हाँ बस, बनारस के रंग मे रंगना चाहती हूँ
मे पार्वती हूँ अपने शिव से मिलना चाहती हूँ-
मैं दिन का मौसम देख कर
बता सकता हूँ यक़ीनन
कि तुमने क्या रंग पहना होगा
आसमान में बादलों को
देख कर समझ जाता हूँ मैं
तुम्हारा मिज़ाज आज कैसा होगा
वैसे ही जैसे
आज भी तुम्हारे कॉलेज से
किसी की रिक्वेस्ट आने पर
मैं समझ जाता हूँ
कि तुमने फिर पिछली रात
किसी को सुनाई थी मेरी कविता...
~ अभिषेक-
ऐ जिंदगी...!
तेरे लिए अपनों से दूर गैरों में है,
घर के नवाब किराए के घरों में है...
ख्वाब पूरे करने के दौर में है,
'ऐ जिंदगी' हम तेरे शहर इंदौर में हैं...-
काल भी उनसे थर थर कांपे आंख खुले कायनात ये डोले,
डमरू धारी विनाश पर भारी, अनंत सत्ता सरकार
हमारे बम बम भोले।-
दूरियां अपनेपन का एहसास करवा रही है,
इंसानो को छोड़िये जनाब,हमें हमारी शोर भरी जन्नत की याद आ रही है।-
मौसम-ए-ठंडी
का अनोखा सा ख़ुमार है...
हमारा "इंदौर"
शिमला होने को तैयार है...-
एक चाहत थी मेरी राहत को मिलेंगे किसी दिन
ना अब मुझे राहत है ना आज इंदौर में राहत है
Rahat indori
01-01-1950
11-08-2020-
लहरे, तूफान, और डोलती कश्तियां
आखिर डुबते कैसे नही जनाब,
इश्क़-ए -दरिया किनारे बसा चुके थे हम बस्तियां।-