बदल जाने का इल्ज़ाम
सिर्फ तुम्हे ही क्यों दू
जब की समय के साथ साथ
मैं भी बदल गई हूं-
चाहे कितनी शिद्दत से मांग लो यहां हर मुरादे
पूरी नहीं होती!
अगर लोग दिल से निभाते तो प्रेम कहानियां
अधूरी नहीं होती!-
दिल के पुराने इल्ज़ाम-ए-मर्ज़ , ने रुखसत नहीं ली ।
तुमने , उसपे नए इल्ज़ामात की पट्टी चढ़ा दी ।
और ज़ख्म फिर से हरे कर दिए ।
-
कहीं अब मुलाक़ात हो जाए हमसे,
बचा कर के नज़र गुज़र जाइएगा...
जो कोई कर जाए कभी ज़िक्र मेरा,
हंसकर फिर सारे इल्ज़ाम मुझे दे जाइएगा🤐...।।।-
“Tumpar kya hi ilzaam lagate
hum yaadon ke liye,
Ye toh hamari yaaddasht thi jo
kamzor nahi huyi...!”-
Tum bhi kmaal krte ho
Galtiyan tumhaari hain
Aur tum ilzaam hamare
Naam krte ho.-
इस झूठी दुनियां में इल्जा़मों के घेरे हैं...
उड़ती हुई पतंगों पर बे-जोड़ पहरे है...
काफ़िर इंसान जहां गली-गली में ठहेरे हैं...
अरे,
यहां उन लोगों के बसेरे है जो तेरे मुंह पर तेरे और मेरे मुंह पर मेरे हैं...-
वक़्त बेवक्त इल्ज़ामों में घिरे है
क्या कहे इंसानो में घिरे है!-
"Yaadasht mere yaar ki kamzor thi,
Aur bhulane ka ilzaam usne mujh par lga diya..."-