याद और फरियाद।
हर लफ्ज़ वह, तारीफ़ मैं, वह पूरा दिन, तारीख मैं,
गर कश्ती वह, साहिल हूँ मैं, हैं दर्द वह, हर चीख मैं।
जाते नहीं हर याद से रहते हो अब फरियाद में,
तू ही मेरी हर शायरी, तुमसे शुरू इरशाद मैं।
एक फ़ूल सा हूँ मैं कहीं, जो धूल में लिपटा हुआ,
उन ख़्वाबों के सहारे ज़िंदा, मैं यहाँ सिमटा हुआ।
वह चाहतों का सिलसिला, जो चाहकर भी ना मिला,
ऐसे मिला, जैसे खिला, हर ज़ख्म उसने मेरा सिला।
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