घर जल जाते हैं यहां, दो पल के बाद, माशूक कहता है, कुछ होने नहीं दूंगा। आँसू में ओंझल हुई आशिक दिन-रात, वह फिर से कहेंगे- मैं सब सहीं करूंगा। — Niyati SK
कुछ आग को मैंने भी, यहां गले से लगाया, वजूद लेकर आया था, तुम्हें रूह मेरी देकर। बह मैं सकता नहीं, कहना तुमने सिखाया, बस तेरी पुकार की देर, जिएंगे संग रहकर।