जब से उसने खींचा हैं, खिड़की का परदा एक तरफ़
उसका कमरा एक तरफ़ है, बाकी दुनिया एक तरफ़-
बाद में मुझ से ना कहना घर पलटना ठीक है
वैसे सुनने में यही आया है रस्ता ठीक है
शाख से पत्ता गिरे, बारिश रुके, बादल छटें
मैं ही तो सब कुछ गलत करता हूँ अच्छा ठीक है
आँख तक तस्दीक कर देती है बंदा ठीक है
एक तेरी आवाज़ सुनने के लिए ज़िंदा है हम
तू ही जब ख़ामोश हो जाए तो फिर क्या ठीक है
मुझे मालूम है कब्र तक तेरे आसूँ पीछा न छोड़गे
मैं मर जाऊँ तो अपना ख़्याल रखना अच्छा ठीक है-
बात सिर्फ़ इतनी सी थी , मुझसे कुछ कहा नही गया उससे भी फिर चुप रहा नही गया ।।
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एक इधर मै हूँ कि घर वालों से नाराजगी है,
इक उधर तू है कि गैरों का कहा मानता है |
मै तुझे अपना समझ कर ही तो कुछ कहता हूँ,
यार तू भी मेरी बातों का बुरा मानता है ||
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मेरे ज़ख्म नही भरते यारों मेरे नाखून बढ़ते जाते है,
मैं तन्हा पेड़ हूँ जंगल का मेरे पत्ते झड़ते जाते है..-
Rat kisi k yaad me katati hai or din office kha jata hai,
Dil jine pe mile hota hai to maut ka dar kha jata hai.-
किसी और के साथ उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा ,
वो थक जाएगा और मेरे गले से आ लगेगा।
मुश्किल में मैं तुम्हारे काम आऊँ या ना आऊँ।
तुम एक आवाज़ दे लेना तुम्हे अच्छा लगेगा ।।-
लारियों से ज्यादा बहाव था तेरे हर एक लफ्ज़ में,
में इशारा नही काट सकता तेरी बात क्या काटता।
मैने भी जिंदगी और शब-ए-हिज्र काटी है सब की तरह,
वैसे बेहतर तो था कि में कम से कम कुछ नया काटता।
तेरे होते हुए मोमबत्ती बुझाई किसी और ने,
क्या ख़ुशी रह गयी थी जन्मदिन की में केक क्या काटता।।-