अमन ढूंढते फिरते हो, हाथ में खंजर छुपा रखा है
पीछे से बार करते हो अगर,तो अमन में क्या रखा है
किस्मत के मारों ने मजहब बनाए होंगे
सुकून तो साथ में है दंगों में क्या रखा है
अलग वही है जिसने गुरबत बना रखा है
हम तो बुरे हैं ना? फिर नेकी में क्या रखा है?
साथ देना नहीं तो मत दो मगर दुश्मनी में क्या रखा है
जो लगी हो आग बदले की, फिर दोस्ती में क्या रखा है
अंदाज सीख लो जीने का यूँ मरने में क्या रखा है
जंग शुरू की है तो लड़ो, यूँ डरने में क्या रखा है-
मसाफत राहों की तय करते करते टूट गई चप्पल
अलामाते मशक़्क़त नक़्श हैं पांवों के तलवों पर-
Unse door ho gaya khatm ho gai qurbat
Jabse waqt badla hai mil gai hai gurbat-
ज़ख़्मों पर अपने कलमों से मरहम लिखने वाले लोग,
सहरा की गर्मी भी दिलकश मौसम लिखने वाले लोग।
कैसी ख़ुशियाँ कैसा जलसा कैसी महफ़िल कैसा सुख
हर सू हर जा बस मिलते हैं मातम लिखने वाले लोग।
जाने कितनी तहरीरें ग़ुरबत की पढ़ कर आए हैं,
सोना चांदी मूंगा माणिक नीलम लिखने वाले लोग।
दौर-ए-नफ़रत में ना जाने किस हालत में होंगे वो,
गंगा जमनी तहज़ीबों का संगम लिखने वाले लोग।
मरने की हद तक जा कर फिर ज़िन्दा होने की क़ुव्वत,
कितने फौलादी होंगे वो रेशम लिखने वाले लोग।-
ये दुनिया दिल जलाना चाहती है,
हर इक शब बस रुलाना चाहती है।
कभी लूटा मुझे जिस बेवफ़ा ने,
वफ़ा वो अब निभाना चाहती है।
अक़ीदत पर टिकी बुनियाद थी पर,
अदावत घर गिराना चाहती है।
मोहब्बत है या कोई इम्तिहाँ है,
मुझे बस आज़माना चाहती है।
हैं मेरे ख़्वाब ऊँचे आसमाँ से,
ये ग़ुर्बत सर झुकाना चाहती है।-
1222 1222 1222 1222
लगाए फूल कागज़ के तो रंगत जा नहीं सकती
धरोगे हाथ पर बस हाथ ग़ुरबत जा नहीं सकती
करो कुछ काम तुम ऐसे करे फिर फ़क्र हर कोई
घरों में बैठ कर तो यूँ अज़ीयत जा नहीं सकती
मिले उन दोस्तों से अब हमें अरसा हुआ लेकिन
कहीं कुछ भी नहीं बदला रिफ़ाक़त जा नहीं सकती
छुपाने से छुपेगी क्या चमक छोटे से जुगनू की
रगों में खून बन दौड़ी सदाक़त जा नहीं सकती
दिए दो हाथ हैं सब को लकीरों पर न जाओ तुम
ख़ुदी पर कर भरोसा तू ये क़िस्मत जा नहीं सकती
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गर्म लिहाफ़ और ऊनी दुशाला भी न पिघला सकी
जिन मुंजमिद सर्द हवाओं को,
चीथड़ों में लिपटे मासूमों के सब्र ने पिघला दिया..!-
2122 1122 1122 22
इक मुसाफ़िर हूँ न जाने मैं किधर जाऊँगा,
कोई रहबर न मिला तो मैं बिखर जाऊँगा।
राह कोई नहीं अब सूझती मुझको फिर भी,
मैं नहीं हूँ वो जो थक हार के डर जाऊँगा।
शह्र आया हूँ कमाने को ये रोज़ी रोटी,
हाथ ख़ाली हैं मेरे कैसे मैं घर जाऊँगा।
मैंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा अब तक,
क्या ये ग़ुरबत जो डराएगी तो डर जाऊँगा।
एक मौका भी अगर मुझको कभी मिल जाये,
जाने क्या क्या यहाँ "मीना" मैं तो कर जाऊँगा।-
वो सिलसिले वो शौक वो ग़ुरबत न रही,
फिर यूँ हुआ के दर्द में सिद्दत न रही.!
अपनी जिंदगी में हो गये मशरूफ वो इतना,
कि हमको याद करने कि फुरसत न रही..!!-
भले ख़ामियां हों, कलाम तो मेरा है,
मैं लिखता हूँ दिल की, ये काम तो मेरा है।
मैं रहता नहीं आज कल ख़ुद के अंदर,
न किरदार हो पर, ये नाम तो मेरा है।
मरूं ग़ुर्बतों में या मौत बादशाही,
तुम्हें इस से क्या है, अंजाम तो मेरा है।
मिलेगी न मंज़िल, तो ग़म ज़रूर होगा,
अधूरा सफ़र ये नाकाम तो मेरा है।
थका दे मुझे ज़ीस्त चाहे तू जितना,
मेरी कब्र का वो आराम तो मेरा है।-