मज़लूम के फज़ायेल पर खुश ना हो...
बसा अवक़ात ज़ुल्म सहना तुम्हें ज़ालिम बना देता है-
मुझको इस बार भी फसाने की
कोई तदबीर नई बुनी होगी
मैंने जो बात कभी कही भी नहीं
उसने वो बात भी सुनी होगी-
यूं मुहब्बत में बिखरने को
संवरना नहीं कहते क्या
तुम्हारे बग़ैर जीने को
मरना नहीं कहते क्या-
तुम कहते हो की तुम आज़ाद हो,
हालांकि तुम्हे इस बात की फिकर ने कैद कर रखा है कि लोग क्या कहेंगे-
इस कमउम्री में इब्तिलाए मर्ज़ ए इश्क़
ज़ुल्मो सितम है सर ता पा अज़िय्यत है
दूर रहने की कोशिशें की लेकिन
तुम्हारे चेहरे में जाज़बिय्यत है-
कुछ भी पाना हो तो मेहनत करना
सिर्फ कहने से कुछ नहीं होगा
राह चलने से मिलेगी मंज़िल
राह तकने से कुछ नहीं होगा-
ए मुअब्बिर बता कोई हसीं ताबीर
ख़्वाब में उसको पास देखा था
मै भला कैसे खुश रहूंगा सनम
मैंने तुमको उदास देखा था-
कभी अल्फ़ाज़ भी चुभते हैं नश्तर की तरह
मुंह जो खोलो तो पहले सोचा करो
ए मुझ में ऐब देखने वाले
तुम कभी आईना भी देखा करो-
मेरे हर जवाब को बेअसर
कर दिया है तेरे सवाल ने
तेरी यादों को तक़्वियत दे दी
तुझे भूलने के ख्याल ने-