तो समझते हैं ,लोग खुद को बड़ा ही बदनसीब!
और उस बेचारे गरीब को महाबदतमीज....l
तो समझते हैं,लोग खुद को बड़ा ही खुशनसीब!
और उस रईसजादे को दुकानेंतहजीब.....ll
-- shilpi Mehrotra---
मगरुर थे वो अपनी अमीरी पर
और हम अपनी ग़रीबी को ख़ुदा मान बैठे ...-
चेहरे इनके भी खिलते हैं ,तुम कोई खुशी
दे कर तो देखो...
दुखों की भरमार इन पर भी गिरती है ,
तुम कोई ब्योरा ले कर तो देखो ...
यूं तो कोयले में पड़ा हीरा भी चमक जाएगा ,
तुम उसे माला में पिरो कर तो देखो...-
ना जाने क्यों कुछ अमीरों
को गरीबों से नफरत क्यों हैं,
अमीर लोग शायद ये भूल जाते हैं कि वो जिस महल में रहते हैं
उसको भी गरीबों ने ही बनाया है, जिस अनाज को खातें हैं उसको भी किसी गरीब ने ही उगाया है
ना जाने क्यों-
हाँ मुझे शक है तेरी इंसानी जात पर ..
कयोंकि तू सवाल उठाता है गरीबों की औकात पर
देखना कभी महलाें में रहने वाले
बेबसी ,लाचारी ,लालसाओं को .. किसी मासूम की आँखों से ढलकते हुए-
उस झोंपड़ी में रो रहा था बच्चा मिठाई खाने को
जिस घर में था ना तेल खाना बनाने को
बीटियां भी चाहती थी रंगोली बनाना,
अपने घर को दिये से सजाना
मां ने समझाया मिठाई खाने से बीमार होते है लोग
मगर कहा जाती है मन से मिठाइयों का लोभ
बाप को आते देख बच्चों का मन हर्षाया
ख़ाली हाथों को पाकर,एक खिलता कमल जैसे मुरझाया।
वहीं दूसरी ओर जल रही थी बत्तियां,
उनके अरमानों संग पिघल रही थी मोमबत्तियां,
फूट रहे थे पटाखे,छूट रहें थे अनार
अगर यहीं होती है दिवाली ,तो दिवाली है बेकार
सुनो ,बाबू इस दिवाली पटाखे ना लाना
भर कर खुशियां मिठाईयों के डिब्बे में
किसी गरीब के घर दे आना।
Parulmayuraj
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यूं तो हमें शिकवा नहीं था कभी,
तुझसे ऐ ज़िन्दगी!
अगर मेरी ग़रीबी को पांव की बेड़ियां न बनाती।
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मंदिरों के बाहर ..
चंद सिक्कों के लिए कुछ
मासूम दौड़ते हैं..
सुनते भी नहीं बात पूरी
भारी जेबों वाले ,और मुँह
मोड़ते हैं ..
मंदिर के दान पात्र मे पैसे डाल
खुद को अमीर कहते है
एक भूखा खाना माँगे
और फिर भी सोता रहे
उसे
वो ज़मीर कहते हैं ..
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क्या करे कोई ....
आजकल किसकी भूख असली है किसकी नकली पता ही नही चलता...
कुछ लोग भूख के आड़ में धंधा करते है...
तो कुछ धंधे के आड़ में भूखे मर जाते है.!
अफ़सोस...!!😔😔🥺-
गरीब की मोहब्बत
अमीरों की मोहब्बत पर भारी है...
आजकल ऐसा प्यार
बहुत कम देखने को मिलता है!-