मारा जल्लाद ने हमारा क्या कुसूर है पैदा होते इसीलिए तुम ये समाज का दस्तूर है ना जाना मैंने दुनिया को चलो ये मेरा कुसूर था पर एक स्वाद की खातिर आरी चलना ये कैसा दस्तूर था सोच लेते एक बार की मुझको कैसे तोड़ा होगा शर्त लगाता हूँ मै इसकी इस तर्क को भी तुमने मोड़ा होगा
छुपा कर, बचा कर, रोमांचित रखती है, चैन से, बे खौ़फ़ जीने देती है जो हमको.. सांसे जो हम लेते है जीने को दुनिया में.. प्रकृति है जो हमें हर रोज़ नई सुबह देती है.. प्रकृति है जो हमें हर रोज़ नया जीवन दान देती है...