मौहब्बत के सिलसीले, जबसे तुमसे मिले
खत्म ही नही होते, ज़िंदगी से गिले..!!-
गीले शिकवे भी किससे करूँ,
उसके लिए भी तो कोई अपना
चाहिए होता है।
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शायद कभी खुद से मिले होते !
तो आज न ये गिले होते !
शिकायत न खुद से होती !
और न ये होंठ सिले होते !-
गिले शिकवे जो भी हों दूर कर लेना,
गलतियाँ कुछ हुई हों अगर माफ कर देना,
जश्न में फिर कोई अड़चन मत करना,
जो भी हो नया साल आने से पहले दिल साफ कर लेना ।।
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शिकायत नहीं कर रही हूँ -
पर गिले - शिकवे मुझे आज भी है ।
हक नही माँगी कभी हक से ,
पर मन हिचकोले खाता आज भी है ।
वचन निभाया है मन से ,
पर मेरा विश्वास ड़गमगाता आज भी है ।
नही तोडा है किसी का दिल कभी ,
पर लोगों को शिकायतें मुझसे आज भी है ।।
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Gile, shikwe aur shikayat bhi nhi hai
Tere siwa kisi aur ki chahat bhi nhi hai
Tere pehlu me rehkar jo hasil hui mujhe
Duniya me kahin aur wo rahat bhi nhi hai
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फिर बारिश आई
और पुराने सारे गिले शिक़वे
दिल के धो गयी।
फिर ठण्डी हवा के
झोंकों ने मुझे छुआ
और मैं तेरे खयालों में खो गई।-
Na samjh saka hakeem hamare marz ko
Pata nhi phir kyun us ne parhez bataya h-
गिले शिकवे सब वक़्त रहते मिटा लिया करो
कल हर रोज़ आता है, पर हर किसी का नहीं-