दस्तूर था लड़कपन था दरमियाँ हमारे,
इक उम्र बावला-पन था दरमियाँ हमारे ।।
बरसात से छिड़े गुल शर्मा गए सर-ए-रह,
गीली सड़क पे इक सावन था दरमियाँ हमारे ।।
भाड़े का आशियाँ मेरा, वो मकाँ की मालिक,
पर्दे के पार इक आँगन था दरमियाँ हमारे ।।
वो भूलता रहा, उसको खोजता रहा मैं,
इक लहु-लूहान मधुवन था दरमियाँ हमारे ।।
था राब्ता उसे कुछ छायी थी बेकरारी,
दिल-चस्प इक मक़ामन था दरमियाँ हमारे ।।
छाया फितूर उतरा आया नया जमाना,
तो यक-ब-यक नयापन था दरमियाँ हमारे ।।
उल्फत रही कभी, कुछ पल बे-मुरव्वती थी,
"गुमनाम" दोगला-पन था दरमियाँ हमारे ।।
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