Dipanshu   (गुमनाम)
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Joined 12 February 2019


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4 APR AT 10:55

अक्सर मुझे कोई सताता है नबी
आंखें मुझे कोई दिखाता है नबी
खोया रहूँ जागूं मग़र क्या फ़र्क है
हरदम मुझे कोई रुलाता है नबी
इक डायरी यादों की उनकी है रखी
इक खत मुझे अब भी बुलाता है नबी
मैं मर गया तो कौन सुनता है भला
वो ऐब कितने फिर गिनाता है नबी
मैं पी भी लूँ तो दर्द ये मिटता नहीं
वो ज़ख्म हर मय में मिलाता है नबी
मैं और ज्यादा मय-शफ़क़ होता रहा
दो घूंट भी कोई पिलाता है नबी
कुछ रेंगता है जिस्म पर ऐसे मेरे
ज़र-ए-ज़ख्म पर खंजर फिराता है नबी
"गुमनाम" हूँ सो जानता हूँ दिल्लगी
हाँ दिल लगाकर दिल जलाता है नबी

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27 OCT 2024 AT 1:02

सोचता हूँ खरीदूँ इक मकान तुम्हे देखकर,
भूल जाता हूँ सारा जहान तुम्हे देखकर,
यूँ तो हैसियत नहीं मेरी तुम्हे पाने की,
लेकिन देखता हूँ आसमान तुम्हे देखकर ।

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27 OCT 2024 AT 0:53

रूठे हुए बादल को मनाते अपने हैं
बीते हुए सावन को बुलाते अपने हैं
यूँ तो कोई किसी को ऐब नही दिखता
जानता हूँ इतना कि हँसते-सताते अपने हैं

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26 OCT 2024 AT 1:09

दिल्ली की राहों में वो अजनबी मिल गई,
होंठों की नज़ाकत जैसे सुबह की ओस खिल गई।
नज़रें ठहर सी गईं, लम्हे थम से गए,
उसे देखते हुए जैसे ज़िंदगी के हर रंग झिलमिल गए।

अब अपने शहर में हूँ, पर वो ख्यालों में बसी है,
हर सांस के साथ उसकी खुशबू सी घुली है।
दूर होकर भी वो नज़दीक ही लगती है,
उसकी यादों में रातें चुपचाप जलती हैं।

कभी फिर उस राह पर लौट जाऊं, ये ख्वाहिश है,
दिल्ली की गलियों में फिर उसकी सदाओं की आहट बाकी है।

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25 OCT 2024 AT 23:02

वो कहते हैं फूल, हम आब-ए-गुलाब कहते हैं
सूरत है चाँद सीरत लहजा-ए-आफताब कहते हैं
धूल दिखती तो नही जरा भी पेशानी पर उनके
जाने क्यों लोग उन्हे बंद किताब कहते हैं

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11 SEP 2024 AT 2:49

जाने किस मुकाम पे आ पहुँची है जिंदगी
अल्हड़, आवारा वो पागल सा लड़का
सालों साल जो मोहब्बत में भटका
किसी दिन कोई दास्ताँ लिख दिया
कोई जाता तो दिल को रास्ता लिख दिया

वो सावन में ठहरता
वो बारिश में भटकता
जाने कितनी निगाहों को खटकता

खयाली पुलावों को खा चुका है वो
वो जो जिंदा था जा चुका है वो

जाने किस मुकाम पे आ पहुँची है जिंदगी
अल्हड़, आवारा वो पागल सा लड़का

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13 JUN 2024 AT 1:27

अबकी बार तुझे बेपनाह सताऊँगा
लगेगी जो हाथ तो गले लगाऊँगा
तड़पेगी तू इक दम के लिए बाहों में
मैं तुझसे तेरा हर दम छीन लाऊँगा
और मेरी नफ़रत को तू कमजोर न समझना
कंजूशी है इश्क़ में पर काम चोर न समझना
मैं तुझको तेरी ही मोहब्बत लौटाऊँगा
देखना अबकी मैं बाजी-ए-इश्क़ जीत जाऊँगा

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17 MAY 2024 AT 18:25

गले से लगा लूँ सुनूँ दिल कि गर
कहूँ गर मुझे जो इजाज़त नहीं

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27 APR 2024 AT 23:37

किसी बड़ी दरगाह का
छोटा-मोटा भिखारी हूँ
दिखता सबको हूँ
मगर किसी को दिखता नहीं 😅

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17 APR 2024 AT 11:20

तिल भर सी मेरी मोहब्बत पर
तुम नफ़रत का पहाड़ रख देती हो
पल भर जो हासिल हो कोई नज़र
तुम पल भर में नज़र भर देती हो
दस्त मे दस्त रहे होंगे जमाना रहा होगा
अधूरी मोहब्बत का फसाना रहा होगा
कुछ ख्वाहिशें कुछ जुमलेबाजियाँ रही होंगी
तेरा भी कोई आशिक़ कोई दीवाना रहा होगा

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