" गरीब के कपड़े "
देखे मैंने गरीब के कपड़े,
तो वो धूल रहित पाए ।
दाग होकर भी उनपर,
वो बेदाग नजर आए।
बेसक वो कपड़े धूल रहित होते हैं,
क्योंकि वो पसीने में धुले होते हैं।
अजी वर्षा के पानी से सिंचाई कहाँ,
ये अपने पसीने से खेत सिंचा करते हैं।
उन कपडों में खुशबू ए मेहनत है साहब ,
गीत भी ईमान के गाते हैं।
ना जाने कितने मील चलकर आए थे वो कपडे ,
अंततः किसी पेड़ पर नजर आते हैं।
देखे मैंने गरीब के कपड़े,
तो वो धूल रहित पाए।
दाग होकर भी उनपर,
वो बेदाग नजर आए।
इन्हें जेब कतरा समझने वालों,
ये तो भरी जेबें सिला करते हैं।
देखे मैंने गरीब के कपड़े, तो वो धूल रहित पाए।
दाग होकर भी उनपर, वो बेदाग नजर आए।
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