एक कवि की कलम के भाँति
बसंत में खिलती हुई कली
या रेगिस्तान में मिली छाँव
कहना तुम्हें, ठीक नहीं होगा
क्योंकि कविता और ग़ज़ल तो
कल्पनाओं का डेरा है
पर तुम एक हक़ीक़त हो
एक ऐसी हक़ीक़त जो
कई मीठे, कड़वे, तीखे और नमकीन
स्वाद से बनी है
जो वक़्त के साथ
परतों में एक एक कर
ज़बान पर खुलती है
मेरा मन जब भी
तुम्हें नाम देने में ना-क़ाबिल होता है
तब मैं तुम्हें मेरी आख़िरी पढ़ी नोवल में से
एक पसंदीदा किरदार का नाम दे देता हूं
क्योंकि उस को पढ़ते हुए जब
लफ़्ज़ों को किसी छवि का आसरा चाहिए था
तब एक वफ़ादार पढ़ने वाले की तरह
उस किरदार में मैंने
तुम्हारी छवि का तसव्वुर किया था,
बस यूं ही मैं साहित्य और तुम्हें
अक्सर मिला लिया करता हूं
किंतु एक हक़ीक़त मैं भी कहना चाहता हूं
तुम एक किरदार नहीं पूरी किताब हो-
मैं तो पहले से था फ़ना उस पर
और उसने की इल्तिजा उस पर
हम तरसते थे उनकी नज़रों को
और उनका यूं घूरना उस पर
ख़ुश्क आँखों में ख़त्म हैं आँसू
पलकें काफ़ी भिगो चुका उस पर
बे-अदब, बद-तमीज़, ख़ुद गर्ज़ी
और निकला वो बेवफ़ा उस पर
वक़्त सरके है रेत के जैसे
इंतिज़ारी की इंतिहा उस पर
फ़र्श सोने का हो या पत्थर का
धूल का हक़ है बैठना उस पर-
चोट का इंतिज़ाम रखते हैं
हम ज़बाँ बेलगाम रखते हैं
यूँ तो माँ बाप कहते हैं उनको
वो ख़ुदा का मक़ाम रखते हैं
है अहम नाक़िदों का होना भी
हुक्मराँ पर लगाम रखते हैं
हम जुड़े रहते हैं ज़मीं से, पर
आसमाँ को ग़ुलाम रखते हैं
होंठ पर रख के कुछ तबस्सुम सा
क़त्ल का ताम-झाम रखते हैं
तुम तो रखते हो उनको नारों में
हम तो दिल में भी राम रखते हैं-
दोस्ती सल्तनत की करता है
बात फिर शहरियत की करता है
ठान ले जब सफर में बढ़ना वो
तर्बियत हैसियत की करता है
छोड़ देता है जो जहालत को
रौशनी दस्तख़त की करता है
अपनी नियत में खोट रख कर के
माँग वो दस्तख़त की करता है
याद करता है काम पड़ने पर
इल्तिजा अहमियत की करता है
करता रहता है कामचोरी जो
ख्वाहिशें वो सिफ़त की करता है-
हँसते चेहरे का हाल देखो ना
कोई मेरा रुमाल देखो ना
हिज़्र के बाद उठ रहे मुझ पर
कैसे कैसे सवाल देखो ना
रंग तुझ पर लगा नहीं पाया
हाथ को है मलाल देखो ना
टूट के, फिर यक़ीन करता हूँ
देखो मेरी मजाल देखो ना
चुकता सब का हिसाब करता है
उस ख़ुदा का कमाल देखो ना-
मुहब्बत में सियाना हो रहा हूँ
तेरे दिल से रवाना हो रहा हूँ
वजह पा ली है मैंने ज़िंदगी की
मैं लफ़्ज़ों का दिवाना हो रहा हूँ
बहुत ख़ुश हूँ मैं पैदाइश के दिन पर
चलो मैं भी पुराना हो रहा हूँ
बसाया है किसी को अपने दिल में
किसी का आशियाना हो रहा हूँ
बहुत से लोग मुझको चाहते हैं
मैं जीने का बहाना हो रहा हूँ
बुरा इक दौर जो देखा है मैंने
तभी जा कर ज़माना हो रहा हूँ-
इस मुखड़े पर मरने वालों
ख़ूब जियो मर मिटने वालों
इश्क़ के दरिया से बच निकले
शोक मनाओ बचने वालों
जो दिल से खाने लायक था
शर्म करो उन्हें चखने वालों
जल में कैसे जल पाओगे
इक शबनम से बुझने वालों
मंज़िल मंज़िल क्या जपते हो
एक क़दम में थकने वालों
इस दिल को तुम घर ही समझो
मेरे दुःख में रहने वालों
रब के चरणों में चढ़ते हो
ओ कीचड़ में खिलने वालों-
रात, जुगनू सँवार जाते हैं
रौशनी में वो हार जाते हैं
ख़ामियों पर तरस सी आती है
कैसे-कैसे सुधार जाते हैं
अपने जलने की ऐंठ रखते थे
अब हवाओं से हार जाते हैं
जो ख़ुदा पर यक़ीं नहीं रखते
वो भला क्यों मज़ार जाते हैं
ये तअल्लुक़ अज़ाब देते हैं
मेरी ख़ुशियों को मार जाते हैं-
अजब दस्तूर देखा है फ़रेबी से ज़माने का
मुक़दमा धूप लड़ती है, समंदर सूख जाने का
कहानी में लिखे किरदार से जो इश्क करता हूं
बड़ा ही खूबसूरत सा सफर होगा फ़साने का
बड़ा ही ख़ूबसूरत सा सबक़ चिड़िया सिखाती है
हर इक तिनका बचाना तुम तुम्हारे आशियाने का
हमें देखे उदासी और पतझड़ भाग जाते हैं
यही ईनाम मिलता है हमारे मुस्कुराने का
ये रूहानी मुहब्बत में तजुर्बे तल्ख़ हैं अपने
हमारा दिल नहीं होता कहीं पर दिल लगाने का-