Rohit Bhardwaj  
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Thanks to all to read and like my poetries. Keep happy and enjoy life!
Joined 28 October 2020


Thanks to all to read and like my poetries. Keep happy and enjoy life!
Joined 28 October 2020
30 OCT 2020 AT 9:46

" गरीब के कपड़े "

देखे मैंने गरीब के कपड़े,
तो वो धूल रहित पाए ।
दाग होकर भी उनपर,
वो बेदाग नजर आए।

बेसक वो कपड़े धूल रहित होते हैं,
क्योंकि वो पसीने में धुले होते हैं।
अजी वर्षा के पानी से सिंचाई कहाँ,
ये अपने पसीने से खेत सिंचा करते हैं।

उन कपडों में खुशबू ए मेहनत है साहब ,
गीत भी ईमान के गाते हैं।
ना जाने कितने मील चलकर आए थे वो कपडे ,
अंततः किसी पेड़ पर नजर आते हैं।

देखे मैंने गरीब के कपड़े,
तो वो धूल रहित पाए।
दाग होकर भी उनपर,
वो बेदाग नजर आए।

इन्हें जेब कतरा समझने वालों,
ये तो भरी जेबें सिला करते हैं।
देखे मैंने गरीब के कपड़े, तो वो धूल रहित पाए।
दाग होकर भी उनपर, वो बेदाग नजर आए।

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30 OCT 2020 AT 9:12

"Wo stree hai kuch bhi kar sakti hai"

हाँ स्त्री हूँ।
कुछ भी कर सकती हूँ।
कभी हिमनदी सी शीतल,
कभी आग की ज्वाला हूँ।
कभी बनजाऊं मदर टेरेसा,
तो कभी लक्ष्मीबाई हूँ।

हाँस्त्री हूँ।
कुछ भी कर सकती हूँ।
नैनों में अश्रु की धार लिए, होठों से मुस्कुरा जाती हूँ।
पूंजी कमा तुम लाते, मैं उनसे रोटी बनाती हूँ।
तुमको खिलाकर खाना, मैं मार तुम्हारी खाती हूँ।

हाँस्त्री हूँ।
कुछ भी सहन कर सकती हूँ।
कभी शौहर के लिए माशूका,
कभी क्रीड़ा - वस्तु बन जाती हूँ।
खिलाफ जबकि समाज मेरे,
समाज में ही जन्माती हूँ।

हाँ स्त्री हूँ।
कुछ भी कर सकती हूँ।
जिंदगी दो दिन की, दो दिन भी क्यू सहूँ ?
खुद को कह सहनशील, कबतक चुपरहूँ ?
सह के दिखा हर दर्द मेरा,
मर्दानगी का ठप्पा लिए ,जो घूम रहा।
-रोहित भारद्वाज

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