वो शर्ट!
बेटा ये वाला शर्ट क्या करना हैं?
कौन सा अम्मा....!!
आज़ के दिन ये शर्ट क्यों सामने आया, अम्मा ने उसे वैसे ही रखा था, जैसा मैंने उन्हें 10 साल पहले दिया था। हां, इस बार घर पर आना कुछ यादों को जिंदा रखनें जैसा हो गया। वो शायद सभी करते होंगे ना, सर्दी के कपड़ों को हम धूप दिखाते हैं। बस! मैं भी कुछ ऐसा ही कर रहा हूं, पर आज, जब एक बैग को धूप दिखा रहा था, तो अचानक से ये यादों का पिटारा खुल कर फैल गया। यादों का ऐसा पिटारा, जो सफेद रंग में भी रंग बिरंगा था। जाने कितने सारे यादें मानो! आंखों के सामने रोशनी बनकर, अनार के दाने की तरह फूट रहे हों। सच में ये तो दशहरा में दिवाली जैसा हो।
सफेद शर्ट जो मेरे फेयरवेल के वक्त साथ था। फेयरवेल, जो आज तक पूरा नहीं हो सका। खैर!
वो चार साल, मानो! मेरे सामने थे। कॉलेज का वो पहला दिन से लेकर मेरे रूममेट खोजने तक, दोस्ती के सारे पाठ, पहली बार किसी से हाथ मिलाना, अरे यार! सर नहीं, भईया बोला कर, रैगिंग का ज्ञान, कैंटीन की मस्ती, "बंक", प्रॉक्सी जाने क्या–क्या, ए टू जेड तक, और हां! पहली ड्रिंक और पहली प्यार की महक, कैसे भुल सकता था। सब कुछ तो वैसे ही पूरा का पूरा बंधा हुआ।
ताज्जुब की बात होती, अगर मैं इसे रखा होता। पर अम्मा ने इसे जिंदा रखा हैं, हां! मेरे जीवन का एक अहम हिस्सा इससे जुड़ा हुआ हैं। हिमांशु से "हिम" बनने का किस्सा इससे लगा हुआ हैं।
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