घूमता था वो कभी गलियों में
सारा दिन जो शख़्स आवारा
भाग दौड़ वाली ज़िंदगी में
आज फिर रहा मारा मारा
जो लेता था कभी बैठे बैठे मौज
करता है आजकल वो काम सारा
रहती है फ़िकर आजकल उसको
कैसे चलेगा घर का गुज़ारा
जो था कभी शौक़ीन चीज़ों का
उसने आज अपने शौंक को मारा
रह रहा आजकल घर से दूर
जो था कभी सारे घर का दुलारा-
He is torn between love;
Love for his son &
Love for his wife
Because his wife clearly despises
His daughter-in-law-
जब अपने अपनों के लिए रंग बदलते हैं,
तब एक ही घर में कई चूल्हे जलते हैं।-
गलत है अपनों को अपना समझना
क्योंकि उन्होंने ही सिखाया है
चार दिन की खुशियों को
अब गम में बदल डाला है
करके दूर हमको खुद से
शायद खुद को खुश पाया है
दिखी नहीं मजबूरी उनको
शायद इसीलिए ही फैसला ये सुनाया है
दी है इक नई जिंदगी
जिसमें अकेले ही रह कर दिखाना है
जाने किस गलती की सजा दे रहे
जो आज तक समझ न आया है-
खेली थी संग जिसके
अब वो लोग कहाँ हैं ?
बैठती थी साथ जिसके
अब वो साथ कहाँ हैं ?
छूट गए वो लोग
और छूट गया वो साथ
क्योंकि सोती थी साथ जिसके
अब वो रात कहाँ है ?
अपनों की खुशियों में
अब अपनापन कहाँ है ?
सपनों की हवेली में
अब वो लोग कहाँ हैं?
छूट गई वो खुशियाँ
और टूट गया वो सपना
क्योंकि अपने ही शहर में
अब अपने लोग कहाँ हैं ?
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मोहब्बत और परिवार में मेने मौत को था चुना
माता पिता होते है खुदा से भी बढ़ कर ये मेने
लोगों से था सुना
छोर सकता था में भी परिवार के ख़ातिर मोहब्बत को
मगर क्या करें जनाब
मोहब्बत के बाग़ में हमने इश्क़ के फूल को था बुना
___Dev Aditya Sen (kishu)✍🏼-
पास होने पर लड़ाई की जाती है
पीठ पिछे बुराई की जाती है
आज के जमाने में ऐसे ही
रिश्तेदारी निभाई जाती है
-अनुपमा वर्मा-