श्रेया सिंह   (Shreya, Silent soul 💛)
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Joined 11 June 2019


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Joined 11 June 2019

अब मैं उनके स्वरूप को साहित्य से कैसे जोड़ू
जो खुद में ही साहित्य का एक स्वरूप है

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वो सुनती तो थी सबकी बातों को
कहना कुछ चाहती नहीं थी मगर

टूटी हुई दिखती थी हरदम
हँस कर हँसाना जानती थी मगर

सूरत की सांवली बिल्कुल खास नहीं दिखती थी
सीरत से खुश करना जानती थी मगर

शौक तो उसने हजार पाल रखे थे
परिस्थिति को समझना जानती थी मगर

सवालों के घेरे में हरदम रहा करती थी
आखों से बयां करना जानती थी मगर

बुनती रहती थी वो ख़यालों के जाल को हरदम
आवाज में उसके एक मधुरता आ जाती थी मग़र

सादगी, शांत, ऐसे अनेक भाव थे उसके अंदर
उन सब को खुद में समेट रखना जानती थी मगर

प्रेम ,लगाओ,रिश्तों में अटूट विश्वास रहता उसका
समय और किस्मत से हार जाती थी मगर

वो थोड़ी नासमझ सी सबकी बातों में आ जाती
सबके समझ में ना वो जल्दी आती थी मगर

थी कोई लड़की जो चुप रह कर भी
सब कुछ कहना जानती थी मगर

Shreya,Silent soul 💛











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प्रेम और लिखावट समरूप हैं
जितनी गहराई प्रेम में है उतनी ही
गहराई लिखावट में है

लिखावट अगर आकार है, तो
प्रेम उस आकार की ख़ूबसूरती है

प्रेम अगर इंतजार है , तो
लिखावट उस इंतजार में मिलने वाला सुकून है



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शब्द से शब्द जोड़ कर
खयाल से खयाल जोड़ कर
पहर से पहर जोड़ कर
और किस्से से किस्सा जोड़ कर
मैं तुमको और खुद को
हर रोज़ लिख कर जोड़ रही हूँ

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कुछ चीज़ों से कभी दिल नहीं भरता
तुम्हें देख कर भी मुझे अब सब्र नहीं मिलता, और
वाज़िब नहीं लगता मुझे अब ये मिलना मिलाना
चलो कहीं चलकर ठहर जाते हैं ,
क्युकि तुम्हारे बगैर मेरा अब मन नहीं लगता

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मैं उसको अपना गली मोहल्ला और पता सब दे कर आया
साथ में कहा कि आना ज़रूर
और आज एक डाकिया आ कर कहता है कि
वो ना आई मगर उसने कुछ भिजवाया है ज़रूर

ख़त को खोल कर देखा तो बातें उसमें हजार लिखी थीं
दिल पर लगने वाली बातें तमाम लिखी थीं
ग़ालिब लगता है कि हमने उनसे पूछ कर ही गलती कर दी
क्युकि उसमें आने या ना आने की कोई बात ना लिखी थी

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लिखावट में अब त्रुटियाँ कम होती हैं ,शब्दों के स्वरूप में बदलाव दिखता है
परिणामतः
समय के बढने के साथ साथ मेरी परिपक्वता में भी वृद्धि हो रही है

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तुम्हें तुम्हारे चाँद का सजदा मुबारक
खुदा के वास्ते तुम्हें तुम्हारी इबादत मुबारक

अर्जी तो अभी हजार पड़ी हुई हैं दरगाहों में
मगर चलो, तुमको तुम्हारी ये ईद मुबारक

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सफर चल रहा है
पता नहीं जाना कहां है
तुम अगर साथ दो, तो
पता करें अपना ठिकाना कहां है

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अफसोस खुद में रहता है मुझको
खुद से शिकायत भी हजार है मुझको
गलती जब खुद ही कर दी थी मैंने
तो अब दुनिया से क्या गिला है मुझको

गुजारिश की थी खुदा से मैंने माफी की
मगर वो भी माफी से इंकार है अब तो
नजरों की हया को कैसे मिटा दूं मैं
जिसमें खुद की गलती का एहसास है मुझको

-Shreya, silent soul 💛




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