वो जो दूर झुका बादल है वो जमीं से कहीं मिला क्यूँ नहीं,
जो हमसे करने आया था मोहब्बत वो हमको मिला क्यूँ नहीं,
वो हमसे बेपनाह मोहब्बत करने का दावा करता है,
तुम्हारी याद का एक कतरा भी फिर जाने मिटा क्यूँ नहीं,
सब बताते रहे मुझे अजीज़ अपना जब तक रही मैं रईस,
फ़िर मेरी अफ़सुर्दा पर कोई करीब जाने दिखा क्यूँ नहीं.
वो अक़्सर मेरी बातों से मुझसे नाराज़ हुआ करते थे,
मैं वही हूँ आज भी फ़िर उसे मेरी बातों से गिला क्यूँ नहीं,
हमेशा कहते जाओ बहुत मिलेंगे तुमसे बेहतर इस जहाँ में,
जाने क्या बात थी मुझमें कि आज तक उसे कोई मिला क्यूँ नहीं.!
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