क्यों होते हो हैरान?
सुनकर ये खबर कोई कल की।
क्यों बनते यूँ तुम अंजान इतने?
देखकर ये हैवानियत ,
क्या और चाहते हो बताना,,,
बड़े सभ्य देश के निवासी हो तुम।
पहले जहाँ खुद बनते हो ,पात्र विश्वास के।
फिर खुद ही छुरा घोपते हो।
वाह! कितनी मासूमियत से तुम
उन सच्चे दिलों की शराफत से खेलते हो,,
अरे हाँ ,दिखाबे की जहाँ कोई सीमा ही नहीं ।
ये तो वो देश है ?
या यूँ कहूँ मैं तो गलत नहीं ,,
असभ्यता से भरे हुए लोगों का ये देश,,
दुनिया के हर सम्मान को पाकर भी हुआ आज अपमानित है।
हाँ मत हो हैरान अब इस बर्बरता से।
जिन्हें अफसोस नहीं तनिक ,
करकर कलंकित मातृभूमि को तक।
क्या ही वो समझेगे भाषा प्रेम की कभी कोई।।
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