जिंगादी के आईने में हर रोज़ अक्स बदल जाते है। कभी सुनेहरे सपने तो कभी बिखरे ख्वाब नज़र आते है। कभी खुशनुमा चेहरे तो कभी गमज़दा आँखें इसमे मैं देखता हूँ। झूठा दिलासा दिल को देकर बहला तो लेता हूँ, पर ज़िंदगी तुझमे मैं अपना सच्च देखता हूँ।
जब कभी परेशानियों से घबरा कर माँ की गोद में सर रखती हूँ, माँ कहती है चिन्ता मत कर मै कुछ करती हूँ। मानो जैसे माँ के पास कोई जादू की छड़ी होती है जब भी याद करो माँ सामने ही खड़ी होती है।
पता नही क्यों मुझको सब बदला बदला सा लगता है, जो कभी अपना था वही बैगाना सा लगता है। एक चुभन सी है दिल में, एक अंजाना सा डर लगता है। समझा था जिसको जीवन भर का साथ बस बाकी चार पल का लगता है। जो संजो के रखा था ख्वाब कब से, बिखरता सा आज लगता है। किस से माँगू जवाब इस का, जो दिल में सवाल हर बार उठता है।
अजीब कश्मकश सी है दिल में मेरे आज कल, खुद पर यकीन नही, ना किसी पर विश्वास है। ना जाने क्या चाहती है ज़िंदगी मुझसे, ना जाने क्यों हम खूद से ही उदास है। ढूंड रही हूँ अपना ही वजूद, अपनी ही पहचान मांगती हूँ। सब कुछ तो है मेरे पास, फिर भी ये खालीपन कैसा मे नही जानती हूँ।
आज कल तो ये हाल है कि एक ही घर में रहते है पर एक दुसरे से बात करने की फुरसत किसी को नही। साथ तो बैठे है पर नज़र भी मिलती नही। वाह रे टेक्नोलॉजी क्या चीज़ तुने इन्सान को दी है, स्मार्ट फोन ने सबके जीवन में अपनो की जगह ली है।