FULL PIECE IN THE CAPTION
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रहमत,नेमत,बरकत है घर की बेटियां,
और मैं जहेज़ में तुझ को क्या क्या दूं !!
رحمت,نعمت,برکت ہے گھر کی بیٹیاں..
اور میں جہیز میں تجھ کو کیا کیا دوں !!-
हाँ मैं वहि गुडिया हूँ ,जो एक ग़रीब परिवार से
जन्मी माँ-बाप पर बोझ हूँ l
मैं वही गुडिया हूँ ,जो दहेज के भय से
एक बूढा आदमी से ,बांध दी जाती हूँl
हाँ मैं वही गुडिया हूँ ,जो पैरो मे पायल बांधे
हाथो मे चुड़िया पहने, होठ पे चुप्पी साधे
एक अजनबी से बांध जाती हूँl
हाँ मैं वही गुडिया हूँ ,जो गुड्डी गुडिया का
खेल छोड चुल्हा -चौका
बासन करती हूँl
हाँ मैं वही गुडिय़ा हूँ जो शादी बंधन से अंजान
आज परिवार तथा समाज द्वारा
दहेज की बेडियो मे
बांध दी जाती हूँl
होती हूँ बेखबर मैं, मन ही मन सोचती हूँ
क्या है ये समाज ,कैसी है ये विडम्बना
जिसने मेरा बच्चपन छीनाl
हाँ मैं वहि नन्हि गुडिया हूँ ,जो बार बार दहेज माँग
के कारन थक हार फांसी
पर झूल जाती हूँl-
सोना-चांदी बर्तन गाड़ी
क्या क्या लोगे दहेज में
कीमत तो तुम समझने से रहे उस बेटी की
जो सजी है दुल्हन के जोड़े में
What's your demand in dowry...
Gold, Silver, The Vessels or Vehicles
Because You are never going to understand
the value of a daughter
adorned in the bridal dress.-
Ek Baap Ne Shaadi Mai Apni Beti De Di....
Aur Lok Truck Mai Jhaank Rahe The Ki
Dahej Mai Kya Aaye Hai....
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zindagi कीमती है ,या dahej ??
क्या है ना ,
आज एक बाप ने अपनी zindagi सौंप दी, और लोग पूछ रहे थे
"dahej me kya hai"-
आज पहली बार किसी सामाजिक मुद्दे पर मैंने कोई रचना लिखी है उम्मीद है आप सब को पसंद आएगी...
😭शीर्षक😭
दहेज एक अभिशाप...
मरणोपरांत मेरा एक लड़की से संवाद...
Plzzzz read this full poem in caption...
And drop your feedback in comment box...
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प्रेम के बंधन में बंधी थी,
एक नई दुनिया बसाने अाई थी,
परन्तु पैसों की लालसा ने ऐसा जकड़ा,
कि चार दिन भी चैन से ना जी पाई थी।।।
कभी हाथ उठा, कभी खाना न मिला,
चंद पैसों की लालसा ने,
इस प्रेम के बंधन को ताक पर रख दिया।।
मां को सब बातें बताए,
तो समाज के डर से वह चुप हो जाएं,
"बस कुछ ही पल और मेरी बच्ची",
यह बोल, सोने को कहा जाए।।
पिता के साथ पैसों की तंगी देख,
उनसे कुछ कह न पाए।।
छोटी से तो कुछ बोल भी न सकती,
यह सोच कि होगा उसका भी विवाह,
कहीं उसका इन रिश्तों से ही भरोसा न उठ जाए।।
सहती रहती हर एक जुल्म,
परन्तु वो पति के घर का आंगन न छोड़ती,
ये सोच, कि कहीं ये समाज,
उसके माता पिता की परवरिश पर ही उंगली ना उठाए,
है अभी छोटी बहन भी घर में,
कहीं उसकी ज़िन्दगी पर भी असर न पड़ जाए।।।
भोर होते ही उठ कर,
फिर वह ज़ुल्म सह रात को सो जाए।।
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“Dahej, mei kya doge?” they asked without hesitation.
“SONA”, her mom said pointing at her.
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