मैं कैसे कहूँ इश्क़ में बात जिस्मों की होती नहीं,,
बात रूह की होती तो तुलना चाँद से होती नहीं,,
ना सुनती वो ताने किसी से कम खूबसूरत होने का,,
अपनी सहलियों के बीच में वो यूं सहमी होती नहीं,,
ना चलता कारोबार फिर ये मेकअप के रहीशो का,,
कोई माँ को फिर साँवली बेटी की चिंता होती नहीं,,
ना होती फ़िक्र किसी भी बाप को बेटी के रिश्ते की,,
कोई बेटी रिश्ते के इनकार से छिपछिप के रोती नहीं,,
ना होता बोझ दहेज़ का किसी भी पिता के कांधे पर ,,
किसी भी माँ बाप की आँखे फिर रात भर रोती नहीं,,
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