धड़कते दिलों से सांसों को रिहाई लेनी है
ओढ़ कर चुनर तेरे इश्क की
मुझे अंतिम बिदाई लेनी है
....................................................
-
याद है ना...? मुझे अंधेरों से कितना डर लगता था। जब भी बिजली जाती थी, मैं चीखती हुई तुमसे कैसे लिपट जाती थी? और तुम्हें कितना पसंद था... उन अंधेरों में, मोमबत्ती की हल्की रोशनी में मेरे बालों को सहलाते हुए कान के पीछे ले जाना। याद है...मैं कितनी हँसती थी, कितनी बेतुकी बातें करती थी... पूरे घर में धमाचौकड़ी मचा कर रख देती थी। ये जानते हुए भी कि तुम्हें मौन से कितना प्रेम है... तुम जब भी माँ की दी हुई लाल चुनरी मेरे सर पर डालते थे और कहतें थे.."इसमें तुम कितनी प्यारी लगती हों।" तब मैं चिढ़ते हुए तुम्हारी दी हुई वो नारंगी चुनरी लगा लेती थी और कहती थी " देखों इसे हर कुर्ती के साथ जँच जाता है... वैसे भी मुझे प्यारी लगने से ज्यादा तुम्हारी लगना पसंद हैं।"
पर तुम्हारे जानें के बाद मेरी दोस्ती कब अंधेरों से हुई पता ही ना चला... मेरी आवाज़ कब इतनी धीमी हो गई की मुझे एकांत और मौन से प्रेम हो गया इसका अंदाजा मुझे रत्ती भर भी नहीं रहा... नारंगी चुनरी मिल नहीं रही। लाल चुनरी बिस्तर में पड़ी है... पर कभी लगाने की हिम्मत नहीं हुई। क्या तुम्हें यकीं होगा की मैं वही लड़की हूँ जो बागों में तितलियों की तरह फूलों पर मंडराती रहती थी... पर सच कहूँ तो अब एक– एक पल मुझे काटों की तरह चुभता हैं।
मुझे फिर से फूलों से प्रेम करना है... नारंगी चुनरी ढुंढनी है।
तुम कब आओगे...?-
आज कि रात बिखरने दो इन सितारों को आसमानों में
लगता है
अरमानों की चुनरी लहराई है किसी की अपने प्रियतम के लिए।।-
गर रंग है तू तो मैं हूँ फीकी चुन्नरी रसिया
मुझको ना भिगोये तू, तो कैसी होली रसिया।
Gar rang hai tu to main hun phiki chunari rasiya,
Mujhko naa bhigoye tu, to kaisi holi rasiya.
-
ओढकर ओढनी "मेरे नाम" की आज
उन्हें चुपके से घुघँट उठाकर "मेरा दीदार"करते देखा है।
मानो ,जैसे
मैंने पहली दफा आज ही….....
अमावस की रात मे पूर्णिमा का चाँद खिलते देखा है...।
-
Hawe ke jhoke Ne Meri chunari udayii,
Mera dil thehra, saansein tham gyii.
Soch main baithi, ki ye Hawa kahin tu to nhiii...!!😳-
Odh li Maine ye Chunari tere Naam ki,
Baabul ki ab main kaha rhi...
Ye seeta hogyi apne raam ki..!!!-
प्रीत की चुनर ओढ़ाकर तेरा नूरानी चेहरा घूघट से सँवारुगा,
नज़र ना लगे तुझे किसी की तेरे ही दुपट्टे-से छिपाऊगाँ!!-
तेरे गुनाहों की पोटली मे
बराबर की हिस्सेदार हूँ मै
जो काम किए है तूने
उनकी कसूरवार हूँ मैं
रंगों की जो होली खेली है तूने
उसी सफेद चुनरी मे लगा दाग हूँ मैं-
देखो कितनी प्यारी है ये मेरी सतरंगी चुनरिया
रंग बिरंगी सी दिखती है ये कितनी सुंदर लगती है,
बाबुल और साजन की सब आशायें जुड़ी हैं और
अम्मा और बहना की एक अनमोल डोर बंधीं है,
सखियों और सहेलियों के मस्ती के पल हैं इसमें
बचपन को छोड़ जवानी का अब सब मेल है इसमें,
नयी उड़ानें ,नयी उमंगे नये सपने पूरे करने को हैं
सब पूरे करने में हम अब जिंदगी आकर समझें हैं,
जिंदगी की खुशियों से परे भी है एक आठवां रंग
ना उम्मीदें ,ना ही सपनें ना रिश्तों में अब अपनापन है।
-