सुलझ रहें है अब शब्दों के जाल से धीरे धीरे
इक अरसा हो गया महफ़िल सजाई ही नहीं।
उलझने तो बहुत है ज़िंदगी में हमारी,
इक अरसा हो गया सुलझाई ही नहीं ।
पहले हर बात में कुछ लिख दिया करती थी
इक अरसा हो गया कलम उठाई ही नहीं।-
यूं तो सड़कों पर शोर बहुत रहता है
पर सुनसान गालियों में बेचैनी सी होती है
शहरों मे रात तक जागा करते हैं लोग
और गांव में तो परिंदे भी जल्दी सो जाया करते हैं
सपने बिकते हैं शहरों की ऊंची ऊंची इमारतों में
और गांव में तो आंगन में ही सुकून मिल जाया करता है
उन्हें नहीं होती जरूरत महंगी गाड़ियों या घड़ियों की
सूरज की चाल से उन्हें वक्त का पता लग जाया करता है।-
वक्त इतना मुश्किल तो नहीं
हालात थोड़े अजीब हैं
थोड़े वक्त के लिए ही सही
अच्छा वक्त आता ज़रूर है
ठहरने के लिए शायद वक्त ना हो
क्या ऐसा भी होता होगा
कि अच्छे वक्त का भी बुरा वक्त आता होगा?-
कल कुछ झूठ देखा था
आज वो सच लग रहा है
कल कुछ सच सुना था
आज वो झूठा नजर आ रहा है
कुछ सच था जो अब झूठ लगने लगा है
या कुछ झूठ सा जो शायद सच हो चुका है
जो हुआ है क्या हुआ है पता नहीं
अब सवाल तो ये है कि सच क्या है
और झूठ ही क्यों सच लगने लगा है-
Part II Post-244
मोहब्बत को मोहब्बत के खातिर छोड़ आए हैं,
अपना सा लगता नही है ना उनका शहर,
उनकी गलियों के रास्ते हम मोड़ आए हैं,
मोहब्बत को मोहब्बत के खातिर छोड़ आए हैं।
मुकद्दर ने ना चाहा कि कोई मुलाकात हो उनसे
मुकम्मल कर के हर बात हम
अपनी लकीरें उनके हाथों में छोड़ आए हैं
हम मोहब्बत को मोहब्बत के खातिर छोड़ आए हैं-
गर हो मुमकिन तो
मुकम्मल कर लें
कुछ अधूरी मुलाकातें
कुछ अधूरी बातें
कुछ अधूरे ख्वाब हैं बाकी
तेरे साथ खूबसूरत पल बिताने के
मुकम्मल कर लेते हैं
अधूरे नाते जो टिके हैं
बेवजह कहीं मोड़ पर
तेरी राह तकते हुए
मुकम्मल कर लेते हैं
वो अधूरे सफर
जो कभी साथ में शुरू किए थे
गर हो मुमकिन तो-
अगर मुझे कुछ देने में
हर्ज़ हो तुझे तो
बददुआ ही दे देना,
कोई तो खुदा से दुआ मांग रहा होगा
मेरे लिए कहीं ना कहीं।
सुना है कि दुआओं से पहले
बददुआ का असर होता है,
पर इसे भी झुठला नहीं सकते कि
उसके घर देर ज़रूर है पर अंधेर नहीं।-
ज़मीर जल चुका है भीतर से
ऊपर से तो केवल एक परत बाकी है,
नदी की तरह बह रही है ज़िन्दगी
नीचे दलदल भी है किसे पता
किसी को आसरा देते हुए
तो किसी की प्यास बुझाते हुए
मटमैली हो चुकी है निकलते निकलते
ज्ञात तो है कि मंज़िल और कुछ नहीं
एक खारा समंदर ही होगा
पर तसल्ली इस बात की है
की वहां पहुंचते ही कोई बंदिशें ना रहेगी
रहेगा खुला आसमां
और हर तरफ आज़ादी......-
तेरी सोहबत ने इतना बदल दिया मुझे
कि जिस ज़ुबां पर अलफाजों का एक समंदर हुआ करता था
वहां खामोशी का रेगिस्तान बन गया है।-
महत्वूर्ण है इक इक कण
इस विशालकाय सृष्टि के सृजन हेतु
फिर ये भेद क्यूं कि
कोई बड़ा है या कोई छोटा
जब सब कुछ सुक्ष्मतम कण से निर्मित है।-