कल की बात है,
जब मैंने खुद से बात किया,
अपने में ही कुछ सुंदर फूल पाया,
जो किसी और की कली से खिले थे,
ये देख अंतरात्मा में खुशी जाग्रत हुई,
मगर उस खुशी को किसी की नजर लग गई,
और
विधि का विधान भी यही होता है कि
सुन्दर चीजे बहुत ही जल्दी जुदा हो जाती है
जैसे वो खुशी रूपी कली से बना पुष्प
एक निश्चित समय पश्चात
धरा पर गिर जाती है
यह दुनिया का सबसे बड़ा यथार्थ है।-
कहते है संयम पा लेना कोई सरल कार्य नहीं...
और उसे पाकर संजोये रखना उससे भी कठिन कार्य हैं...!!
तो इस पाने और खोने के चक्र में उम्र क्यों पैमाना बन जाती है...!!-
कर्म चक्र
जो बोया हे, वो एक दिन पेड़ बन जाएगा ।
जिसे आज तुम स्वर्ग समझ रहे, नरक भी तू यहीं पाएगा ।
यह कर्म चक्र हे, ना ही इसे कोई बच पाया है।
ना कभी इसे झुटला पाएगा ।
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ये दुनिया
एक तमाशा है
जहां हर कोई आता
जाता है, तुमने भी तोड़ा होगा
बोहतों को, तुमने भी
हजारों का दिल
आजमाया है।।-
जीवन क्या है?
पंच तत्वों 'से' बनकर पंच तत्वों 'में' मिलने तक का सफर है जीवन चक्र।
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समय का पहिया
याद दिलाए...
जीवन बहते पानी सा
बहता जाए...
तुम क्यों उम्मीद में हो कि
अनुकूल भी होंगे कभी हालात...
है सफल वही ...
जो बहे बहाव के विरुद्ध...
आँधियों में अलख जीत की
जो जगाए... !
मन के कोने मुझ से पूछें...
ख़ुद के जले भला कैसे...
"मन का दीप जगमगाए...!!'-
एकाकी अश्रु,एकाकी है हास
सर्वभाव एकाकी,एकाकी से हृद में..
आहों के मेल,प्राण रहे झेल
टूटे से स्वप्न विहग,जीवन के खेल में..
तृप्ति के पनघट पर,विष घट ही पास आये
मधुमूल बने शूल,निश्चित अवरोह में..
सुख अमृत,दुःख की हलहाला है अटल सत्य
उमड़-घुमड़ मिलते ये जीवन रस बूंद में..!!
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