कल की रात ख्वाब ना आएंँ...
तो हम तेरे ख्यालों में ही खो गए...
तेरी यादों की नर्म चादर में...
खुद को समेट कर सो गए...-
चादर की सिलवटें अब भी नज़र आ रही है
क्या बतलाऊ छोटी छोटी यादें,
क्या केहर ढाह रहीं है
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ख्वाहिशों की चादर से लिपटा हुए थे,
वक्त ने आकर झकझोर दिया,
हिसाब जो किया ज़िंदगी का,
तो खुद से किया सवाल,
कब जियोगे खुद के लिये!!!-
ओढ़ लेती हूँ तेरे मुहब्बत की चादर,
जब यादों की हवाएं तेज़ चलती हैं।
तू भी लौट आएगा, जरूर एक दिन,
इसी उम्मीद पर, मेरी शाम ढलती है।
कि फ़ानी हो गई हूँ तेरे इश्क़ में ऐसे,
तुझसे दूरी का सोच,जाँ निकलती है-
उन्हें रजाई की दरकार नहीं साब,
वो उम्मीदों की चादर तान सो जाते है.-
मैं जवानी की वरक ओढ़े इतराता रहा
उधर मां बुढापे की चादर में लिपट गई।।-
हम अपने हुनर का कद क्यूँ नापें?
तुम अपने सोच की बिसात देखो।
चादर मेरी छोड़ो यार,
तुम अपने पाँव का हिसाब देखो।
Don't ask me to prove my talent,
Look into what levels your thoughts hold,
Don't be concerned about my sheet,
Look where your feet goes.-
चादर तान लो जुल्फों की अपने चेहरे पर
हम गिर गये तो संभल तुम भी ना पाओगे-
Sajaakar apne dil ki mehfil har roz sote h,
Apne khwabo me tera deedar har roz krte h..
Zamane bhar ki takleefo se har roz guzarte h
Odd kar teri yaadon ki chadar har roz sote h..-