माना प्रेम में दिया होगा मैंने
रंगदरिया से छानकर
इश्क़ के कुछ सौन्धे रंग,
बाँधे होंगे तुम्हारे आँचल में
संगम के अगणित स्वप्न।
दिसंबर की कंपकपाती ठंड में
मुट्ठी भर धूप,
तुम्हारे बदन के कोरे सफहों पर
मेरी साँसों की छुवन।
लेकिन विरह में मैं तुम्हें
केवल अपनी कविताएँ दे सकता हूँ.-
अभी तलख तो ना कुन्दन हुए ना राख हुए,
हम अपनी आग में रोज जलकर देखते... read more
मैं अक्सर इंसानों से
उजाले भरते रौशनदानों से
पेड़ों की शाख़ों से
मंदिरों के चरागों से
सीने में कैद ख़्वाबों से
आलमारी से ताकती किताबों से
तुम्हारी बातें किया करता हूँ,
और उन बातों को लोग
कविता समझ बैठते हैं.-
उड़ान किसने भरी
यह जरूरी नहीं,
मुद्दा ये है कि
धूप खिले या ना खिले
हवाएँ चले या ना चले
उड़ान भरी जा सकती है.-
मुझे यूँ तकना
जैसे फुटपाथ पर लेटा असलम
उम्मीद भरी आँखों से
तकता है चाँद,
मुझे यूँ मिलना
जैसे इस जहाँ में
हर मजदूर को मिले
दो वक़्त की रोटी.-
आसाँ नहीं था जब ख़ुदा का इंसाँ होना,
जायज़ था ऐसे में उसका माँ होना.-
मैं
इस असमंजस में
मारा जाऊँगा
कि वो मुझे
खुले बालों में
अच्छी लगती है
या गूथे हुए बालों में.-
किसी रोज ऐसा हो
कि तुम सवाल करो
और मैं ख़ामोश रहूँ
तो इसे मेरी चुप्पी मान
रूठ कर चली ना जाना,
एक दफा पढ़ लेना आँखें मेरी
क्यूँकि शब्दों ने छला है
इंसानों को सदियों से.-
पिघलती चाँदनी रातों में
गुलज़ार के नज़्म सुनते
मेरे काँधे से लगकर
जब तुम सोई थी.
अंधेरे के लिहाफ़ में
मैंने छुआ था
तेरी ज़ुल्फों को,
देखा था मैंने
खिल आया था
चाँद
तुम्हारे होठों के किनारे.
इक बात बताता हूँ
इतराना मत,
अब भी
चमकता है
उस चाँद का प्रतिबिंब
मेरी उदास यादों में.-
नए साल की हर बात मुबारक,
सावन की बरसात मुबारक
दिसम्बर की ठंडी रात मुबारक
अपनों का संग-साथ मुबारक.
नए साल की हर शाम मुबारक
खुशियों का पैगाम मुबारक
नाम मुबारक, एहतेराम मुबारक
नए सुबह का सलाम मुबारक.-