लोगों का आचरण इस प्रकार से भ्रष्ट हो चुका है!
कि अब तो बातों से भी मिलावट की बू आती है!!-
मत हँस तूँ गरीब घरों के, रात्रि सन्नाटों पर...!
इतिहास घसीटेगा तुम्हें कभी, दलदल भरी घाटों पर...!!-
पड़ जाती हैं दरारें पत्थरों पर, बूंदों की चोट से...!
पल रहे हैं भ्रष्टाचारी कीड़े,नेताओं की ओट से...!!-
लालच की 'बू 'दौड़ चुकी हैं, इंसानी शरीर के अंदर में,
कफ़न के पैसे दफ़न हो गए,इन सियासती समंदर में..!
आखिर उन आत्माओं का नाश,करूँ तों करूँ कैसे...?
क्योंकि वो आत्मा भी तो हैं किसी,सर्वकारी सिकंदर में..!!-
भ्रष्टाचार :एक दूषित विचार
कहानी क्या कहूँ इस देश के भ्रष्टाचार की,
ये तो उत्पत्ति है, प्रलोभन के दूषित विचार की।
कहानी क्या कहूँ, इस अंधकार स्वरूप अत्याचार की,
जिसके दर्पण से झलकते हैं,
अश्रु गरीब और लाचार की।
क्या कहूँ कहानी इस भ्रष्टाचार रूपी कुविचार की,
जिसमें भावनाएँ तार - तार होतीं हैं,
मानवता रूपी सुविचार की।।
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एक तस्वीर मेरे "भारत" की, जब "सोने की चिड़िया" कहलाता था,
प्रेम, आदर, सम्मान का भाव जो "मूल मंत्र" कहलाता था,
पर अब कहीं गुम हुआ है नफ़रत और लालच के डेरे में,
भ्रष्टाचार, बलात्कार, और गुंडागर्दी बसी है अब हर कोने में।-
"भृष्टाचार और प्रेम"
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अफसाने लिखे हम प्यार के
या लिख दें भृष्टाचार पें
दोनों ही अंतिम छोर पें
लिख दें क्या संसार पें
हाथ जोड़ कर नेता खड़ा
मतदान लिए अपने उंगलियों पें
प्रियतम की प्रिय रुकी
लिए प्रेम की वार कहीं
बिन नीति नेता कैसा
बिन प्रिय के प्रेम
जहाँ औरत जात को छेड़ दिया
वहाँ है कैसा वेर
प्रिय से तोड़ दिये नाते
करना पाए वो प्रेम
जिस देश में राधा कृष्ण बसे
वहाँ कैसे हुआ अंधेर
भृष्टाचार तो नाचे सिर
हर गली में है उसका फेर
गाड़ी के लाइसेंस से लेकर
नेता की भरी जेब
हेर-फेर है सब यहाँ
नहीं किसी का खेल
कोई प्रेम की लीला में डूबा
कोई रहा भृष्टाचार में शेर।-
चुनाव के बाद सब भूल जाएंगे...
ये नेता हैं जनाब...
इनको वादे थोड़े याद आएंगे...-
मिलावट का ज़माना हैं,अब आदत डाल लो!
बातों को छानकर असली बात निकाल लो !!-
waqt ke sath logon ko kirdar badalte dekha hai,
kadam kadam par har insan ko badalte dekha hai,
ye siyasat hai yaha koi apna paraya nahi,
siyasat me humne to sardar ko bhi badalte dekha hai,-