Piyush Raj  
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Joined 2 June 2020


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Joined 2 June 2020
2 MAY 2022 AT 16:32

( " कोयल " )


गोधूलि के मनमोहक पल में वो,
क्या सुन्दर साज सजाती हैं...!
कलियों सी कोमल अधरों से एक,
सुरीली तान सुनाती हैं...!!
सावन की रिमझिम बारिश से,
मोती चुन - चुन कर लाती हैं...!
अथक परिश्रम करते रहना ,
बस यही हमें सिखलाती हैं...!!
तिनके की छोटी बगिया मे खुद को,
स्वावलंबी वो बनाती हैं...!
इसी तरह हम युवा पीढ़ी को ,
एकाग्र कर वो जाती हैं...!!

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2 OCT 2021 AT 12:00

आओ बच्चों तुम्हें सुनाएँ , बापू की अमर कहानी..!
कितनी सुन्दर कितनी प्यारी, इनकी मीठी वाणी..!!
पोरबंदर में जन्म हुआ,
इंग्लैंड में पढ़ा - लिखा..!
सन् 15 में भारत लौटे,
यहाँ पर थे अंग्रेज मोटे..!
नमक आंदोलन उन्होंने छेड़ा,
गरीब, भिखारियों का जंजीर तोड़ा..!
सन् 47 में अंग्रेजों को किया उन्होने बे - पानी..!
कितनी सुन्दर कितनी प्यारी, इनकी मीठी वाणी..!!
अंग्रेज भागे दुम दबाकर,
आजादी मनाई ढोल बजाकर..!
सन् 48 में गोड्से ने चलाई गोली,
हे राम ! था गाँधीजी की अंतिम बोली..!
आओ बच्चों तुम्हें सुनाएँ, बापू की अमर कहानी..!
कितनी सुन्दर कितनी प्यारी, इनकी मीठी वाणी..!!

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10 SEP 2021 AT 19:00

लालच की 'बू 'दौड़ चुकी हैं, इंसानी शरीर के अंदर में,
कफ़न के पैसे दफ़न हो गए,इन सियासती समंदर में..!
आखिर उन आत्माओं का नाश,करूँ तों करूँ कैसे...?
क्योंकि वो आत्मा भी तो हैं किसी,सर्वकारी सिकंदर में..!!

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3 JUN 2021 AT 14:11

माँ.....

सलामत रहे उस माँ का आँचल, जिसमे मुझे छुपाया था...!
नींद के आगोश में भी हमें,लोरी गाकर सुलाया था....!

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7 MAY 2021 AT 14:00

कैसे बनाऊं पहली रोटी?
हो जाती हैं यह तो मोटी!
कुछ तो काली कुछ तो पीली,
हो जाती हैं आटे गीली!
देता हूँ कर बेलन को रोल,
फिर भी नहीं होती हैं गोल!
ठीक नहीं होती हैं यह रोटी,
उल्टी हो जाती हैं मोटी!
कोई अधपके तो कोई हैं कच्चे,
लेकिन हूँ मैं अभी तो बच्चे!
कोई तिकोन तो कोई चौकोर,
बनते - बनते हो गया भोर!
कैसे बनाऊं पहली रोटी?
हो जाती हैं यह तो मोटी!
हो जाती हैं यह तो मोटी!
हो जाती हैं यह तो मोटी!

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28 MAR 2021 AT 14:30

अम्बर की बुलंदी पे मानव, जब ध्वजारोहन कर आता हैं...!
पर्वत पलकों को झुकाकर, स्वागतगान गाता हैं...!!

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18 MAR 2021 AT 17:00

कुप्रथा को प्रथा मानकर , ना धार्मिक द्वेषों की बली चढ़ो..!
कलमों में उमड़ता लहू डालकर,तूँ खुद अपना संविधान गढ़ो..!!

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24 JAN 2021 AT 17:00

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10 JAN 2021 AT 10:22

इतिहास साक्षी हैं की....

जब नारी की पावन चरणों पर,पड़ी जुल्म की परछाई हैं..!
दानवता का फन कुचलने, अतीत ने ली अंगड़ाई हैं..!!

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19 OCT 2020 AT 17:39

(कुशल प्रतिभा)

पर्वत भी असफल हैं, ज्वालामुखी को दबाने में..!
देखे हैं प्रतिभाशोषी तुझ जैसे,बहुतेरे इस ज़माने में..!
थर्राएगा कभी अस्तित्व तेरा और निखरेगा हुनर मेरा.. !
क्योंकि दब नहीं सकता कनक कभी तहखाने में..!!

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