" Bharosa Nehi Hai Mujh Par ? "
Ye Kahe Kar Na Jane Kitne Log
Dhoka De Jate Hai...
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Jo Humko Block Karke Rakhethe Aab Wo Firse Mere Saath Baat Karna
Chahate Hai...
Hum Itne Bewakoof To Nehi Hai
Jo Firse Usko Bharosa Karne
Ka Galtiya Kare....
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कभी धूप, कभी धुंध, कभी कोहरा ही कोहरा रोज दिखता है,
मैं सोचती रहती हूं कि मौसम तू इतना क्यों बदलता है?
यह इसलिए है कि बदलते मौसम की तरह आजकल रिश्ते बदलते देखे हैं,
विश्वास करें किस पर यहां भरोसे भी टूटते देखे हैं...
हम हर साल, साल बदलता देखते हैं, मैंने सारा साल लोग बदलते देखे हैं...
अच्छा हुआ लोग बदल गए, हम भी जरा संभल गए।-
में भटकता रहा हर दिन
क्या उसे मेरी याद आती है
तुम खो गए हो उस दुनिया में
क्या मेरी मोहब्बत तुम्हे सताती है ...-
मेरा भरोसा कांच की तरह है
एक बार टूट जाए तो
दोबारा जुड़ नहीं सकता-
Kya bharosa is muskurat ki
Gam ke badal Aasman me phir chha rahe hain-
अब और इंतज़ार नहीं होता हमसे ,
अब और सब्र नहीं होता हमसे ।
प्यार किया है तुमसे कोई गुनाह नहीं की ,
अब और खुद को आजमाया नहीं जाता हमसे।-
मौत यकीनन एक दिन आयेगी
लेकिन कुछ लोग मौत से पहले ही मार देते हैं।-
Kisise Pyaar karte ho !
To usse bandhan main maat bandho
Bharosa rakho uss par,
Agar wo pyaar karta hai to kahi chhod kar nehi jayega ...agar wo chhod kar chala gaya
to pyaar tha hi nehi.....
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