क्यों बसी हैं जान तुम्हारी उन बगीचों में ।
मेरी जान तो उन काटो के गुच्छे में फंसी हैं ।
पर बेशक मैं पाना चाहु उन फूलों को भी ।
पर कमबख्त उसमें भी लाखों मक्खियों की जान बसी है ।-
Chchodo yeh bekaaaar ki baato mein, kahi bee... read more
आज मौसम भी काफ़ी अच्छा था।
रास्ते भी खुले सवारे , नाज़ुक सी गर्म और ।
हलकी सी बारिश, अकेला बैठा एक शख़्स ।
मन में हज़ारों खयाल, बस एक ही बात रठ बैठता।
की हुज़ूर यह इश्क़ भी इतना बुजदिल हैं।
मेरे लाख मना करने के बावजूद भी उसे दिल दे बैठा ।-
मैं वोह हु जो
उसे चारदीवारी में क़ैद रहना अच्छा लगता था ।
मन का अंधेरा जो उजाले में क़ैद हुआ लगता था ।
कोशिशें बिखर सी हुई हैं पर
नजाने क्यों, मन का एहसास क्यों खफा सा लगता था ।
अब वह दफ्न हुए वह सारे खुदगर्ज पन्ने कही
में वही पन्ने हमेशा अपने कब्र से पढ़ा करता था।-
रोज नए ख्वाब, तकलीफें ।
एक अंदाज़, और एक अलग सी पहचान ।
मन का एहसास जो खफा हैं कहीं हफ्तों से।
एक कहानी छुपी हैं कहीं बरसो से ।
मंजिले रो पड़ी हैं, और नजाने क्यों ।
उस मोड़ पे हमेशा क्यों भीड़ खड़ी हैं ।
एक रिश्ता, एक अटूट बंधन ।
जो पूरा ज़माना भी झुकता हैं ।
बेशक उन कागज़ों को भी ।
जिंदगी की कहा पड़ी है ।-
यह इश्क़ इतना पागल क्यों हैं।
मुझे उसने कब्र तक लाके अलविदा कह दिया।-
सुना हैं इश्क़ में जीतेजी दिल के क़त्ल-ए-आम होते हैं ।
आज महसूस भी कर लिया ।
महसूस भी कर लिया मैंने ।
हर एक ज़ख्म जो दिल पे कहीं बार लगे है।
हर समय, हर वक़्त क़त्ल-ए-आम होगया ।
और यह इश्क़ की तालिम में।
कमबख्त बस पिछे रह गया।-
मेरी आँखों के बूँदों में भी तू
मेरे खुदा में, भी तू ।
सोने की कोशिश कहीं बार करि मैंने किस कदर ।
पर मेरे सपनों में भी तू ।
यह सनम, यह हुज़ूर, मेरा इश्क़ इतना बेवफ़ा निकला क्यों।-
मैं लिखूं ऐसे शब्द कि, उसका कोई अर्थ नहीं ।
मैं जला दु सारे वह खत, जिसमें तेरा ज़िक्र नहीं ।
बात तोह तेरी और मेरी हैं, इस ज़माने की नहीं ।
पर कमबख्त यह इश्क़ दिल से निकलता क्यों नहीं ।
निकलता क्यों नहीं।-
मेरी जिंदगी एक हिरन कि तरह हैं ।
कब कोई शेर आजाएं पता नहीं।
हर समय जीवन के बारे में सोचना ।
और उसे निभाना बहुत कठीन है ।
मैं समझता था कि ज़िंदगी एक ही है ।
पर मुझे हर बार बहुत से मौके मिले है ।
और हर बार कोई साथी ।
साथी यानि कोई प्रेमी या अटूट बंधन नहीं ।
एक एहम सा हिस्सा जो हर बार नाकाम ही हुआ हैं ।
लोग समझते है कि सबकुछ जाने देने में ही ज़िंदगी हैं।
पर उसे कौन समझाए ।
अब कौन करे फ़िरसे वही मोहब्बत वही कोशिश ।
इन हाथों के लकीरो में भी किस्मत कहा बची हैं।
चलो ढूंढे वही वक्त को वहीं पुराने शख्स को ।
नजाने किस मिट्टी में धंस गया वह इश्क़।-