मोहब्ब्त तो उनकी सच्ची थी
जिनके खून की खुशबू से आज भी
हमारे देश की मिट्टी महकती है-
अमर शहीद
भगत सिंह,सुखदेव व राजगुरु
के बलिदान दिवस पर,
कोटि-कोटि नमन-
हिस्सा नहीं बनना है मुझे इन गद्दारों की कहानी का,
रूह रहकर भी क्या करेगी जब तक खून ना उबले जवानी का।
रूह तड़पती होगी उन वीर भक्त अभिमानी का
जो लिए तिरंगा डटे रहे इस देश के स्वाभिमानी का।
-rajdhar dubey-
कश्मीर की वादियों में वो ठिठूरता चला गया।
अपने उस हाल में देश के लिए लड़ता चला गया।
बाल भी बांका ना होने पाए, मेरे देशवासियों का,
जान पर खेलता चला गया।
ना डर था, उसे उन कश्मीर की वादियों में सुबह शाम।
जान हैं वो मेरे देश की जान!
शान हैं वो मेरे देश की शान!-
शहीद भगत सिंह 🙏🙏
लिख रहा हूं मै अंजाम जिसका कल आगाज आएगा मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा,
जलियांवाला बाग़ हत्याकांड जनरल डायर का एक धोखा था,
लाखो लोगो पर गोली चलवा दिया ऐसा वो दुष्ट बोका था,
उस समय मैं बस 13 साल का बालक था,
मगर अपने लोगो की ऐसी हत्या देख खून मेरा खोला था,
तब इंकलाब ज़िंदाबाद का नारा मैने बोला था,
आजादी के उस आंदोलन में अंगेजो के लिए मै एक शोला था,
लाला लागपत राय की शहाजत का बदला ले मै वहीं भगत सिंह भोला था,
मैंने ही तो अंगेजो से भरी असेंबली में बॉम्ब फोड़ा था,
भागने की वजह वहीं पर खड़ा हो कर सुखदेव के संग इंकलाब ज़िंदाबाद बोला था,
सजा सुनाई गई थी फासी की जेल में हमें रखा था,
खाना अच्छा न होने की वजह से भूख हड़ताल रखा था,
63 दिन की भूख हड़ताल देख अंग्रेजी सत्ता डोला था,
लाखो कोशिश करने पर इंकलाब ज़िंदाबाद बोलना नहीं छोड़ा था,
इतना कुछ देख कर अंगेजी हुकूमत को भी डरना था,
फांसी की सजा एक दिन पहले ही डरके देना था,
[🙏🙏राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह 🙏🙏]
उस समय भी उनको अपनी ताकत का नमूना दिखाना था,
इंकलाब ज़िंदाबाद बोलते हुए फांसी को हमने चूमा था,
आजादी की चाह कितनी थी ये अब उनको बस बतलाना था,
हंसते हंसते फांसी पर हमने डुला था,
ऐसा बलिदान देख कर पूरे देश का सीना चौड़ा था,
हमने तो सुरूआत करी थी बाद में पूरे हिंदुस्तान ने इंकलाब ज़िंदाबाद बोला था,-
क्यूं हंसते हंसते छोड़ गए वै।
शायद देश खुश रह सके ,
इस लिए मौत को भी सह गए वै।।-
सोच जो परिवर्तन लाए ,
ऐसे उनके क्रांतिकारी विचार थे।
विचलित हो जाएँ शत्रु जिससे,
वो कोदंड की ऐसी प्रबल टंकार थे।
वो तुलसी की पवित्र मानस भी
और दिनकर की हुंकार थे।
कांप उठे रिपुदल जिससे,
वो परशुराम की ललकार थे।
जिनसे असीम प्रेरणा मिलती,
वो ऐसे झकझोरने वालीं झंकार थे।
परन्तु.....
कुछ निजी स्वार्थ के खातिर
कुछ लोगों ने इनको हमसे छिपवाया।
शिलालेख में जिसको मिढ़ना था,
उसको अखबारो में छपवाया।
और जिसको रद्दी में बिकना था,
उसको सोने के भाव में तुलवाया।
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जलिया की माटी चूम-चूम फांसी का फंदा चूम गया।
वो सरदार का बेटा शहादत दे अमरत्व को झूम गया।
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© dk गर्ग
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"The day shall usher in a new era of liberty
when a large number of men and women,
taking courage from the idea of serving
humanity and liberating them from
sufferings and distress, decide that there is
no alternative before them except devoting
their lives for this cause. They will wage a war
against their oppressors, tyrants or exploiters,
not to become kings, or to gain any reward here
or in the next birth or after death in paradise;
but to cast off the yoke of slavery, to establish
liberty and peace they will tread this
perilous, but glorious path."
- Bhagat Singh
(in Why I am an Atheist)-
कविता
"आज़ादी-ए-भगत सिंह का सफ़र"
"जय हिंद जय भारत"
"भारत माता की जय।"
"इंकलाब ज़िंदाबाद"
Please read caption for Bhagat Singh and Other Freedom fighters
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