तो फिर चलो जिंदगी गाडी और खुद को ड्राइवर कहलवाते है,
कर्म नामक इंधन, और भक्ती की सर्विसींग हम सब कराते है।
जिंदगी की गाडी कर्म, प्रेम,करूणा,ध्येय नामक पहियो से चलती है,
न होता है आने वाले पड़ाव का पता, ये बस उम्मीद नामक पडाव से जा मिलती है।
हम ही यात्री, हम ही ड्राइवर, हम ही पड़ाव यहा होते है,
जीवन की यात्रा में हम वोही पडाव पर जाते है, जो हम स्वइच्छा से बोतें है।
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