ज़िंदगीयों को घरों में क़ैद कर के
ख़ुद की पीठ थप-थपाने में लगे हैं,
एक बूढ़ी जिस्म बिस्तर पर पड़ी है
बिन दवाई सिर्फ़ बेटे सिरहाने लगे हैं,
ना जाने किस के हक़ में है फैसला,
पर लोग दिल्ली में खुशी मनाने लगे हैं,
एक बच्चा भूखा है कई दिनों से
बाप उसे सीने से लगाने में लगे हैं,
वह आईन के पन्नों को जला कर
सब को अपना रहबर बताने लगे हैं,
मज़हबी ज़हर को ऐसे घोला गया
के अवाम तालियां बजाने में लगे हैं,
अगर कोई बोल दे दिल्ली के खिलाफ़,
फिर उन्हें लोग गद्दार बताने लगे हैं !!
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