कभी अपने लिखे में जिक्र मेरी करना तुम ,
कभी यूँ ही बेवजह फिक्र मेरी करना तुम,
कभी शब्दों के गाँठ बाँध कर मेरे हक में
दुआ पढ़ना तुम ,
अपने अल्फाजों की मोतियों को गूँथ ,
मेरे बिखरे ख्वाब को समेटना तुम ,
आहिस्ता से मेरे झरोखे में आकर
मेरा नाम गुनगुनाना तुम ,
कभी रंगीन कलमों से
मेरे जिंदगी में रंग भरना तुम ,
हौले से मेरे दर पर आकर
खुल जा सिमसिम कहना तुम ,
मुझसे पूछना मत बस
अपनी कविता से मेरे जिंदगी में उतरना तुम ।
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Waada raha ki tumhe roz likha karenge...
Tasveer nahi toh kya?
Apne alfazon mein zinda rakhenge....-
काश कि तुम कभी समझ पाते
मेरे कपकपाते अधरों को
मेरे अनकहे जज्बातों को
काश कि तुम कभी देख पाते
मेरे लड़खड़ाते अल्फाजों को
कपोलों पर लुढ़कते हुए अश्रुओं को
काश कि तुम कभी......-
अल्फाजों की महफ़िल में,
न जाने, खामोशियों को किसने दावत दे दी !
अब नज़ारा कुछ यूं है, कि.....
दिलों में एहसास की लहर उठ रही है,
पर लबों पर एक लफ्ज़ नहीं !
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Izaat dilse hoti alfazon se nhi.
Mohabbat ehsas se hoti baaton se nhi.-
Alfazon mein mere wajood ko na talashiyega sahab Mai utna bayan nahi kar pati jitna mehsus karti hu
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खामोशियों को मेरी
इशारों से पढ़ लेना तुम,
वो क्या है ना की बयां करने में थोड़ा सा कच्चा हूँ मैं।
- सुहास घोके-
अब जो मेें लिख रहा हूँ,
तो अल्फाजो को तरस रहा हूँ।
तू आए पास, तोड़े दिल और दे दर्द,
बस अब यही ख्वाहिश कर रहा हूँ ।-
Mohabbat mein khamoshi bhi samajh leta hai sathi.
Her baat ka izhar zaruri nhi alfazon se.-