हसरतों के दरवाजों को खटखटाया करो ,
मुझे याद तुम बहुत आया करो ,
तेरी-मेरी कहानी थी बस उतनी ही ,
बस उतनी कहानी जमाने को बताया करो ,
कि था एक रिश्ता फूलों से भी नाजुक ,
था यही शर्त कि इसको ना छेड़ा करो ,
ना कसमें वफा कि हो, ना वादें सात जन्मों वाली ,
निभानी हो तो दिल से निभाया करो ,
भूल जाओ, या कि भुला दिए जाओ ,
मगर याद आया करो , याद दिलाया करो ।
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तो तसल्ली से पढना मेरे लिखे को,
उन में ही कहीं मिलूँगी तुम्हें ,
मे... read more
बरसों की शर्त लगाना ठीक नहीं,
तेरा आँखों से ओझल हो जाना ठीक नहीं,
फिर निराश हो गई रिश्तों से ?
मैं ना कहता था रिश्तों में खो जाना ठीक नहीं,
बूझी-बूझी सी शाम में
मन का दीया बुझाना ठीक नहीं ,
दुश्मन होने भी जरूरी है ,
हर एक से दोस्ती निभाना ठीक नहीं,
मैं उससे दूर से मिल लेता हूँ,
चाँद को जमीं पर बुलाना ठीक नहीं,
ख्वाब देखना तो अच्छा है ,
ख्वाबों में रह जाना ठीक नहीं ।
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ये ख्वाब मुझे सताए क्यों ?
अपनी बात दिल मुझे बताए क्यों ?
मन का मीत तो ठीक है ,
मन का बैरी भाए क्यों ?
अपना गम संभलता नहीं
दिल दर्द पराया अपनाए क्यों ?
भूली-भटकती उन राहों से
वो सदाएं मुझे बुलाए क्यों ?
दिल का राह तो सीधा था ,
फिर टेढ़ी गलियों में जाए क्यों ?
पंछी मुझे तो प्यारे थे
ये पिंजरा मुझको भाए क्यों ?
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पनाह ढूँढू तो पनाह-ए-यार नहीं मिलता ,
मैं जिस की जमीं थी वो आसमां नहीं मिलता ,
खाक हो गए सारे ख्वाबों के पुलिदें ,
अब राख में मेरा कोई टुकड़ा भी नहीं मिलता ,
रेगिस्तान हो गयी है दिल की जमीं ,
इसे अब पानी का बूंद भी नहीं मिलता,
उसे किस दीवार ने घेर लिया,
अब उसका साया मेरे साए से नहीं मिलता ,
मंजूरी भी नहीं मांगी मुझसे उसने बिछड़ते वक्त ,
मेरा मिज़ाज भी अब मुझसे नहीं मिलता,
खुदा भी जरूर खफा है मुझसे,
अब उसका पता भी मुझको नहीं मिलता ।
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हल्का सा काजल अब भी लगाया करना,
मैं योध्दा था ;मेरे बाद तुम सबको बताया करना ।
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मैं तो रूठ गयी थी खुद से फिर
ये आईने में मुस्कुराता शख्स कौन है ?
स्याह रात में जब छोड़ दिया सायों का साथ,
फिर वो दीया जलाता शख्स कौन है ?
मुझे कहाँ याद तुझसे दामन कब छूटा
फिर मेरी यादों में तेरी बातें दोहराता शख्स कौन है ?
सारे राज जानता है वो मेरा हर हुनर पहचानता है
वो शख्स कौन है?
मेरी तनहाईयों में भी मेरे साथ रहने वाला शख्स कौन है ?
जब भी रूबरू होती हूँ उससे हूबहू मिलता वो मुझसे
वो मुझसे दिखने वाला शख्स कौन है ?
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ना जाने क्यों वो लौट कर आते हैं ,
क्यों हसरतों का दरवाजा खटखटाते हैं,
कुछ पल जाकर वापस भी आते हैं,
मेरी खुशियों को दुखाते हैं,
ना जाने क्यों वो लौट कर आते हैं ,
क्यों हसरतों का दरवाजा खटखटाते हैं,
कुछ चिराग बुझ कर भी दिल जलाते हैं,
मेरी हंसी को बड़ा रुलाते है,
ना जाने क्यों वो लौट कर आते हैं ,
क्यों हसरतों का दरवाजा खटखटाते हैं,
कुछ यादें भूलाकर भी याद आते हैं,
मेरे ख्वाबों को आईना दिखाते हैं ।
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जब मेरा वक्त तुम्हें कीमती ना लगे,
तो ऐसा करना मेरा वक्त मुझे लौटा देना ।
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