कुछ रंगों का खुमार था,
कुछ आंखों का नशा...
कुछ बहके कदम थे,
कुछ ठहरा समाँ...
कुछ नादानियाँ हमारी..
पर तुम्हारी बेवकूफियां हज़ार...
क्या रंग लगाने चले थे...
थे पहले से सुर्ख वो तलबगार।
मासूम सी नज़रों से रंगे
हम कुछ दूर से ही रुखसत हो लिए।
वो क्या है ना उनके आशिक कतार में
पहले से थे हज़ार।।
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