मरते मन को मरकर देख रही हूँ
मैं अब ख़ुद से डरकर देख रही हूँ
तुझसे यारा दूर हूँ कितनी
मैं रोते रोते हँसकर देख रही हूँ
बेढंग लिबास लफ़्ज़ों ने फेंका
मैं मौन पहनकर देख रही हूँ
भूल रही हूँ अब मैं लिखना
मैं तुझको पढ़कर देख रही हूँ
नज़र चाँद पर सबकी होगी
मैं तो तारे गिनकर देख रही हूँ
जिस रौशन लौ ने चूमा अंधेरा
मैं तो उसमें जलकर देख रही हूँ
तुमने जो मुझको ताज़ दिया था
मैं करके खंडहर देख रही हूँ-
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साहिब तेरे इश्क़ में अब ये गुनाह कर रहे हैं..
हम प्रेम गागर में सागर अथाह भर रहे हैं..
वजह तेरा होने की, मुझको मिली ही नहीं
आंसू अनगिन ये शिकायत बेवजह कर रहे हैं....
विधि के विधानों से अब बहस क्या करें हम
हम हकीकत की ख़्वाबों से सुलह कर रहे हैं....
अब खुदको भी जानां मैं अपना कहती नहीं
कटघरे में खड़े खुदकी रूह से जिरह कर रहे हैं....
फेर लेंगे नज़र हम सभी से, एक दफ़ा तुम कहो तो
देखो हमें बस, तेरी तरफ हम निगाह कर रहे हैं....
यूँ ना सहरे में अब गमों का चेहरा छुपाओ
हम तेरे लबों का मेरी हँसी से निकाह कर रहे हैं....-
सुनो प्राण धन, तुम जीवन धन हो
तुम मेरे हो कृष्णा राधा....
कब तक बाट निहारे चरणों की दासी ,
अब दूर करो मृगतृष्णा बाधा....
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री तनै दिल लगान की के सूझी
री दिल लगान ते पहलै किन्नै बूझी
क्यूँ बावली होरी, तनै बेरा कोन्या?
तू सुलझी छोरी सै, फेर क्यूकर उलझी-
हमें इश्क़ है तारों से,
चाँद हमारा यार नहीं,
रहने दो अब लौट रहे हैं
हमें तेरा ऐतबार नहीं....
तेरा आना अपनी मर्जी से,
तेरा जाना खुदगर्ज़ी से,
तू बदले अपने चेहरे रोज़,
खबर नई, अख़बार वही
हमें तेरा ऐतबार नहीं....
लो मान लिया,
रौशन तुझसे मेरी रातें हैं,
प्यारी तेरी सब बातें हैं,
पास है तू , पर तेरा प्यार नहीं
हमें तेरा ऐतबार नहीं....
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चलो अब हम ये कहानी भूल जाते हैं...
कभी थे तेरी दीवानी हम भूल जाते हैं...
पायल बोली खनक कर, ठहरो तो ज़रा तुम,
ये ठहरी प्यार की निशानी हम भूल जाते हैं....
शरारत बाकी नहीं, झुकी पलकों से हया बोली,
बचपन से रूठ आई जवानी हम भूल जाते हैं....
तमन्ना थी हमारी, खोई रूह तेरे आने पर लौटे,
नहीं मिलता कहीं अब इश्क़ रूहानी हम भूल जाते है....
ओस की बूँद बन, वो ठहरा है पलकों पर,
कब की थम चुकी बरसात सुहानी हम भूल जाते हैं....
भाप बनकर उड़ गए, फ़िज़ा में ख्वाब कुछ,
संग रहते नहीं हैं आग और पानी हम भूल जाते हैं....-
सपना आँखों से छीने नींद रात की ,
बचपन हाथ छुड़ाकर भागे कोई....
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(Caption)-
मंजिल ख़ुद आकर उनसे मिलती है ,
कदम पलभर भी जिनके रुके नहीं थे....
मंजिल माथा टेक रही क़दमों में ,
सर जिनके संघर्षों में झुके नहीं थे....-