बस एक ही है जुस्तजू
हो
आंँखों आंँखों की गुफ्तगू ।
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बेआरज़ू ...होना पड़ा मुझे आखिर...
मेरी आरज़ू को कुछ ...हासिल कहाँ था ??😢
वो बड़े लोग थे...बड़े शौक थे उनके...
मैं भला उनके...काबिल कहाँ था ?👥
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वक्त का काफिला यूँ चल दिया
मेरी आरजूओं को ढहाने ।
और हम
वक्त-ए-राहगीर तमाशा देख रहे हैं।
क्या करते अब वक्त की पहचान भी
खंजर-ए-शमशीर है।-
कहने को तो अपना नहीं
पर अपनापन कुछ ज्यादा हैं
माना मैं उसकी चाहत नहीं
पर मुझे आरज़ू उसी की आमादा हैं
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जीने की रस्म अदायगी किये जा रहा हूँ मैं,
जाम ए ग़म ए ज़िंदगी पिये जा रहा हूँ मैं,
जीने की आरज़ू में 'मरे' जा रहे है लोग,
मरने के आरज़ू में जिये जा रहा हु मैं..-
कैसे बयां कर दें आरजू ए इश्क उन्हें अपनी ,
खुद भी तो नहीं जानते ये निगाहें तलाश किसे रही है !-
रोशनी की जगमगाहट यहां हर जगह है... कुछ ख्वाब मगर अंधेरों में कहीं गुम से है.....
🙄🙄🤔🤔🤔-
सिमट कर रह गए मिरे ख़्वाब, दिल के कोने में कहीं
जिनको मुकम्मल करने की आरज़ू होती थी तुम्हारी-
तुझसे करनी हैं कुछ गुफ्तगू
आजा हो ले थोडासा रुबरू
अब ना तरसा इस दिल को इतना
तुम ही तो हो उसकी आरज़ू-
काश... 🤗🤗
कुछ दिन ...
बात करते-करते...
उन्हें भी...
हमारी आदत हो जाये...
हमारे दिल का हाल...
सुनते-सुनते ...
उन्हें भी ...🙎
अपने दिल का हाल..❤
सुनाने की आरजू हो जाये...
शायद..🤗🤗
ये शरारते....
करते-करते..
उनको भी...
हमसे मोहब्बत हो जाये..!!! 😘-