चंद इज़ाज अल्फ़ाजों को सहेजते सहेजते
रुह की आवाजों के इतिबार को सुनते सुनते
कभी यादों के उन झरोखो में खुद को रंगते रंगते
वो ढलते शाम के आफताब की सिंदूरी आभा देखते देखते
एक अरसा गुजर गया ..
कभी हर पल को बनाया एक नूर सा
कभी कागज़ पे स्याही का सुरुर सा
कभी दरवाजे पे हकीकत सी लगती आली दस्तक
कभी चौबारे पर फब्तियां लेते हुजूम सा
लम्हा-लम्हा बस तुझमें सिमट गया
वो मनोरम है सिंदूरी और हरियाली का खेल
जो अपनी झोली मे भर लाए अद्भुत से मेल
कभी जहां से मुखालिफत की
कभी खुद मे सिमट गयी
चंद रोज उन अश्कों में खोई रही
संभलना चहा समुंदर सा खुद को संभाल न सकी
लम्हा लम्हा इत्र सी उन यादों में बिखर गयी
अल्फा़ज़ भी पैदा होते है आजाद ख्यालों से
क्या गज़ल नही होती गर बहर नही होते..?
आवा-जाही तों बहुत है यहां लोगो की पर
रुह को अब किसी कि खबर नही होती
कहते है यहां तेरी हिफाज़त को हूँ मै ,फिर क्यू...
बयां ना कर सकी रुह से उन ख्यालों को जो कहना चाहा..
इक सफर मेरी निगाह में है ..
कि ये मुसाफि़र तेरी पनाह में है ..
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उसे टोका ना करो अभी ,,,कुछ दिनों तक...
एक जख्म भरने में आरसा बीत जाता है...-
काचेतून दुसऱ्यांना न्याहाळताना कधी कधी आरशात स्वतःलाही पहावं,दुसऱ्यांच्या कमतरता शोधताना स्वतःनेही थोडस पायरीत रहाव.
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Horizontal Thoughts
ए दिल तसल्ली दिला दे
ख़ामोशी से ही सही
कोई एक कहानी सुना दे
के आरसे हुए
रूबरू हुए चाँद गगन से-
हम जमाने से जब भी मिले हस कर मिले
बस एक अरसा हो गया खुद को खुद से मिले।..-
हो सके तो अपनी दोस्ती बचा लेना
यही पाया है मैंने सब खोते पाते हुए ।
मेरा ठिकाना नहीं की कब मै मर जाऊ
अरसा बीत गया है अब ज़हर चबाते हुए ।-
मिली थी अरसों बाद उसने पूछ लिया,, की इतनी नफरत क्यूँ करते हो मुझसे....? मैंने भी कह दिया की प्यार भी तो तुमसे ही किया था ...!— % &
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पास आकर सभी दूर चले जाते है,
अकेले थे हम अकेले ही रह जाते है!
इस दिल का दर्द दिखाये किसे?
मल्हम लगाने वाले ही खंजर मार जाते हैं!!
जाने क्यूं जिन्दगी में आ जाते हैं लोग।।।-
काही कळ्या उशिरा,
उमलून होती फूल.
सजीवांची काय कथा,
जिथे, आरशास ही पडते भूल.
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एक अर्से से कुछ नया नहीं लिखा,
एक अर्से से मोहोब्बत नहीं हुई,
एक अर्से से दिल नहीं टूटा ।।
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